जितनी अबतक किये खुशामद धरती पर धनवान की
कवि चितरंजन 'चैनपुरा' , जहानाबाद, बिहार, 804425
जितनी अबतक किये खुशामद धरती पर धनवान की ।क्या होता जो कर लेते हम वही भक्ति भगवान की !
खोकर सारी उम्र समझता रहा कि मैं ही जीत गया ।
जीवन की सच्चाई समझते सारा जीवन बीत गया ।।
वक्त गँवाया लालच में अपनी झूठी पहचान की ।
काश ! किये होते हम उतनी ही भक्ति भगवान की ।।
चांदी के सिक्के कागज के टुकड़ों में हम फँसे रहे ।
लिपट के माया में दुनियावी दुखड़ों में हम धँसे रहे ।।
बंधी आँख पर पट्टी रह गई खोज न की सद्ज्ञान की ।
क्या होता जो कर लेते हम तनिक भक्ति भगवान की !
कौड़ी की ममता में पड़कर हीरा धन अनमोल गया ।
आज लुटाकर सबकुछ अंदर से मेरा मन डोल गया ।।
पाऊँ अब चितचैन कहाँ जब रही नहीं सुध प्राण की ।
क्या होता जो कर लेते हम क्षणिक भक्ति भगवान की !
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