जहाँ छिपी है मनुष्यता |
--- वेद प्रकाश तिवारी

गुजरते हैं विचार के यात्री
इन विचारों की श्रृंखला के बीच
मन छोड़ कर अपनी सरलता
बन जाता है
छली , कपटी ,अवसरवादी
जो करता है प्रोत्साहित
अमानवीय कृत्यों को
यदि चाहिए विचारों को ठहराव
तो रखकर साक्षी भाव
उतरना होगा गहरे मौन में
और जानना होगा उसे
जहां छिपी है मनुष्यता ।
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