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गीतों के राजकुमार थे "नेपाली"

गीतों के राजकुमार थे "नेपाली"

            संजय कुमार मिश्र"अणु"

हिंदी भाषा साहित्य को उत्कर्ष प्रदान करने वाले मनिषियों की एक लंबी फेहरिस्त है।उन फेहरिस्तों में गोपाल बहादुर सिंह का नाम बडी श्रद्धा से लिया जाता है।इनके माता का नाम श्रीमती सरस्वती देवी और पिता का नाम श्री रेल बहादुर सिंह था।गोपाल बहादुर सिंह का जन्म बेतिया में ग्यारह अगस्त उन्नीस सौ ग्यारह को हुआ था।
                जब साहित्य में जगत में आचार्य हजारी प्र.द्विवेदी,सूर्यकांत त्रिपाठी निराला,आ.जानकी बल्लभ शास्त्री,रामधारी सिंह दिनकर,हरिवंश राय बच्चन  एक से एक लोग थे तब अपनी पहचान बनाना कोई खेल का काम नहीं था।उस समय काशी जैसे विद्या नगरी में अपनी सशक्त उपस्थिति और सरस गेय कंठावली से जनमानस को जागृत  चमत्कृत करने का काम सिर्फ और सिर्फ गोपाल बहादुर सिंह ने किया।इनकी काव्य प्रतिभा और सरस सृजन शैली का महाप्राण निराला को अभिभूत कर दिया।इनकी प्रतिभा और नाम  का परिमार्जन निराला ने हीं किया।वे हीं गोपाल बहादुर सिंह को तरासर कर साहित्य को दिया बिल्कुल नये अंदाज में नामकरण किया गोपाल सिंह"नेपाली"।
           गोपाल सिंह"नेपाली" की पहली कविता संग्रह उन्नीस सौ चौतीस में"उमंग" नाम से प्रकाशित हुई थी।वे स्वाधीन कलम के उद्गाता रहे है।इन्हे गीतो का राजकुमार भी कहा जाता है।
          पहले लोग ये समझते थे की फिल्मी गीतों का सृजन सबके  बस की बात नहीं है।इस मिथक को भी इन्होंने तोड दिया।फिल्मी जगत के ख्याति नाम श्री शशि धर मुखर्जी इनसे इतने प्रभावित हुए की मुरीद बन गये।मुखर्जी जी के आग्रह पर हीं वे माया नगरी में भी अपना अपूर्व योग दान दिये।उन्नीस सौ पैंतालीस में आई फिल्म "मजदूर" का गीत इन्होंने हीं लिखा।इसके गीत ने एक अलग कीर्तिमान स्थापित किया।
        आज हीं के दिन एक सफर में हीं सरस्वती देवी का लाडला गीत गाते हुए सदा सदा के लिए सो गया।उनके गीतों में जनवादी भावनायें मुखरित होती रही है।इनके गीत आज भी हारे भुले भटके,हताश लोगों के लिए प्रकाश स्तंभ है।
                  --:अध्यक्ष:--
    साहित्य कला परिषद् अरवल