Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

खुद से प्रेम करना वैसा ही है , जैसा फूलों का खिलना

खुद से प्रेम करना वैसा ही है , जैसा फूलों का खिलना


वेद प्रकाश तिवारी

भावनाओं में, रिश्तो में जिनसे आप प्यार पाते हैं ,वे लोग खुद से प्यार करने वाले होते हैं । यदि आप स्वयं से प्यार नहीं करते हैं, तो आप दूसरों से प्यार नहीं कर सकते ।

खुद से प्यार करना  ठीक वैसा ही है जैसे फूलों का खिलना । स्वयं को प्यार करना अपने को ऊर्जा से भरना होता है जो आपके भीतर बैठे हताशा , निराशा और आत्मग्लानि को बाहर निकाल कर आपके भीतर सकारात्मक सोच पैदा करता है । जो आपको  स्वावलंबी ,आत्मसम्मानी बनाता है । जिससे आप स्वयं यह तय कर पाते हैं  कि आपको क्या करना है । यह आत्मविश्वास आपको हर दिन कुछ नया करने को प्रेरित करेगा ।  आप शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहेंगे और पूरे आनंद के साथ हर कार्य को पूरा करेंगे ।  आप जैसे भी हैं, उसी रूप में खुद को स्वीकारें।  आप अपनी तुलना किसी से न करें। आप दूसरों की नकल करने की बजाय अपनी एक अलग पहचान बनाएं । आप अपने जानने वालों को कभी खुद को आपने सुप्रभात बोला है ! ऐसा तो कभी नहीं हुआ होगा। थके हुए मन से दिन की शुरुआत करने का मतलब अपनी ऊर्जा को कम करना है। ऐसे में कुछ नया करने के बारे में कैसे सोच सकते हैं ? तो खुद को उर्जावान इस तरह करें कि सुबह जब आईना देखें तो चेहरे पर मुस्कान लेकर अपने लिए भी सुप्रभात बोलें, मानो आज आपका दिन सबसे अच्छा है। फिर चाहे जितनी भी मानसिक या शारीरिक परेशानियां आएं आदमी घबरायेगा नहीं । वह कठिन से कठिन परिस्थिति में भी अपना धैर्य नहीं खोएगा।

किसी ने बहुत सुंदर बात कही है--

" तूफानो के काफ़िले आएंगे गुजर जाएंगे
   कोशिश होगी तुम बुझ जाओ,चुभेंगी हवायें
   विश्वास के बल पर तय हो जीवन का सफर
   दीप तुम जलते रहना यूही निरंतर

  यहाँ अटल बिहारी वाजपेयी जी की ये पंक्तियाँ
  जीवन को दिशा देती हैं--

आओ फिर से दिया जलाएँ
भरी दुपहरी में अँधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें-
बुझी हुई बाती सुलगाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ  ।
जिसकी प्रवृत्ति छल, कपट और हिंसा की है वे इस बात को गहराई से नहीं समझ पायेंगे। मात्र आदमी के रूप में पैदा होने से कोई आदमी नहीं बन पाता, क्योंकि संपूर्ण जगत का सार प्रेम है और प्रेम शाश्वत है पर आदमी अपनी कामना और तृष्णा के पीछे इस तरह पागल है कि जो चीजें अमृत हैं उसे छोड़ देता है और काम, क्रोध ,लोभ, मोह ,अहंकार आदि जो जहर है उसे पीता रहता है और अपने आसपास दुखों का एक घेरा बना लेता है ।

 इसी संदर्भ में किसी ने कहा है--

 'क्या करेगा प्यार वो इंसान से, क्या करेगा प्यार वो भगवान से, जन्म लेकर गोद में इन्सान के, कर न पाया प्यार वो इंसान से ।

यहां एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि खुद को प्रेम करने का मतलब यह कतई नहीं है कि आप सिर्फ अपने हित की बात सोचें । यहां तो बात खुद को जगाने की है। यह स्वयं के मनोबल को बढ़ाने का एक बेहतर रास्ता है। अगर आप दुनिया को कुछ देना या समझाना चाहते हैं चाहते हैं कि तो पहले खुद को प्यार कीजिये।

 रामधारी सिंह दिनकर भी कहते हैं--
" दीप सदैव आग को धारण किए रहता है। इस कारण से वह     उसके  दुख को बहुत अच्छी तरह से जानता है। इस सबके बाद भी वह दयाभाव से युक्त होकर स्वयं जलता है और दूसरों को   प्रकाश देता है। वह सदा जागरूक रहता है, सावधान है और सबके साथ प्रेम का भाव रखता है " ।


 प्रेम खुद के समर्पण का नाम है। आप जितना ज्यादा प्रेम करेंगे, आपका अहंकार उतना ही ज्यादा गिरेगा। प्रेम में कोई बड़ा नहीं बनता। प्रेम में कोई ऊपर नहीं जाता। आप प्रेम में इसलिए झुकते हैं,  क्योंकि आपके अंतर्मन में बसा हुआ प्रेम अहंकार से रहित होता है ।

प्रेम आदमी को आत्मबल, साहस देने के साथ क्षमा करना भी सिखाता है । परम विद्वान, बड़े से बड़े महापुरुष के जीवन का यदि आप अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि उनके जीवन में प्रेम का सर्वश्रेष्ठ स्थान है उन्होंने खुद से प्रेम किया जिसके बल पर उन्होंने जग जीत लिया ।

जिस दिन से आप खुद से प्रेम करने लगते हैं उस दिन से आपके जीवन में संभावनाएं दिखती लगती हैं और आदमी अपने पुरुषार्थ से अपनी तकदीर सवांर लेता है । 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ