आयकर नहीं उपभोग कर
भारत की प्रथम स्वत्रंता
संग्राम की लड़ाई १८५७ में प्रारम्भ हुआ थी इसके पहले तक लोग आयकर (इनकम टैक्स) का
नाम तक नहीं जानते थें|
यहाँ आयकर “प्रथम बार १८६० में सन १९५७ के स्वतन्त्रता संग्राम के
कारण हुई हानियों की पूर्ति करने के लिए सर जेम्स विल्सन के द्वारा लगाया गया |
प्रारम्भ में भारतीय लोगों की आय का ९७% प्रतिशत टैक्स के रूप में लेने का
प्रावधान किया गया था, पर आय की निश्चित परिभाषा न होने के कारण और कई विसंगतियों
को ठीक करने के लिए १८६३, १८६७, १८७१, १८७८, १८८६, १९१७, १९१९, १९२२ में इस
अधिनियम में संशोधन किये गए कई संशोधन होने के कारण यह अधिनियम काफी जटिल हो गया
था, अंतत: भारत को स्वतन्त्रता मिलने के बाद १९६१ में भारतीय संसद में आयकर
अधिनियम १९६१ के नाम से जाना गया जिसे १ अप्रैल १९६२ से संपूर्ण भारत में लागू
किया गया| इस अधिनियम के आधार में पांच श्रेणियों की आय को आयकर के अंतर्गत रखा
गया (१) वेतन (२) गृह सम्पतियों से आय (३) व्यवसाय / कारोबार से आय (४) पूंजीगत आय
(५) अन्य श्रोतों से आय |
पर आज के युग में दुनियाँ के सभी देश अपने देश के सम्पन्न
नागरिकों पर आयकर लगते है | इसके पीछे, शासकों का सोच है कि इससे गरीबों पर आर्थिक
भार पड़ेगा और आयकर से प्राप्त धन की गरीबों पर खर्च किया जा सकेगा , और अमीर लोग
गरीब के बीच की खाई को कम किया जा सकेगा, परन्तु सच क्या है? आयकर लगाने के कारण न
गरीब अमीर के बीच की खाई पट रही है और उन दोनों के बीच असमानता कम हो रही है|
तो जब , कोई काम, अपने उद्देश्य को ही पूरा न करता हो तो , फिर क्यों न कोई वैकल्पिक उपाय ढूंढा जाये|
हमारे प्राचीन
ग्रंथो में कही भी आयकर की चर्चा नहीं है| पुराने राजा महाराजा भी जनता से कर तो लेते
थें पर आयकर नहीं लेते थें| महँ अर्थशास्त्री चाणक्य ने भी अपने अर्थशास्त्र के
उपयोग कर की बात की हैं| यानि खूब कमाओ, कमाये धन से कल कारखाने लगाओ कोई कर नहीं
पर अगर सोना खरिदोगें तो सरकार को कर देना पड़ेगा| इसका प्रभाव भी पड़ता था| वे अपनी
कमाई का निवेश कल कारखाने को लगाने में करते थें| गरीबों को रोजगार मिलता था लोग
खुशहाल रहते थे|
पर आज आयकर अधिनियम की जटिलताओं के कारण देश में एक भय का माहौल
है | मानव का स्वभाव है कि वह अपनी कमाई से सरकार को कम से कम कर (टैक्स) देना
चाहता है, इसके लिए अपनी वास्तविक आय को छिपाता है और सरकार उसकी छिपाई गयी आय को
निकालने में अपनी पूरी ताकत लगाती है, और इस प्रक्रिया में सैलून साल लग जाता है |
फिर जब आयकर लगाने से देश
में भय का माहौल बनता जा रहा है, अमीर और अमीर होता जा रहा है, गरीब और गरीब होता
जा रहा है, पूरी सरकार की ताकत करबंचको को पकड़ने में लग रही है, जिससे देश में कई
समस्याएँ बढ़ रहीं है, तो फिर क्यों न हम सब विचार करें कि देश में आयकर (इनकम टैक्स)
की जगह उपभोग कर (एक्युपेंडिचर टैक्स) लगाया जाय | पर कैसे?
हमारी पुरातन अर्थव्यवस्था
में कमी भी आयकर नहीं लगाया गया था| हमारे पूर्वज ने गरीब अमीर की असमानता को एक
सत्य मानकर स्वीकार किया था| उनकी नजर में गरीब और अमीर समाज में रहेंगे ही, इसलिए
उन्होंने कोई ऐसा प्रयास किया ही नहीं जिससे अमीर छोटा हो जाय और गरीब बड़ा|
फिर आखिर गरीब को अमीर खटकता क्यों है, अमीर व्यक्ति कार में
घूमता है, बड़े-बड़े होटलों में खाना खाता है, और गरीब को तो दो जून की रोटी भी नहीं
मिलती है| इसका मतलब हुआ, गरीबों को अमीरों की आय से नहीं, बल्कि उसकी उपभोग के
कारण आँखों में खटकता है |
अगर उसके उपभोग पर कर लगा दिया जाय तो गरीबों को अमीर नहीं खटकेगें
|
अमीर टैक्स नहीं देना
चाहेंगा और उपभोग की जगह वह निवेश करेगा| देश में कल कारखाने लगेगें, रोजगार
बढ़ेगा, गरीबों को पैसे मिलेंगें, और उनकी भी खुशहाली आयेगी |
वास्तव में आयकर लगाने से
उपभोग को बढ़ावा मिलता है| अगर किसी व्यापारी को कार खरीदने की जरूरत है तो वह मँहगी
कार खरीदेगा| वह सोचता है कि मँहगी कार से उसकी आयकर की देनदारी कम हो जायेगी |
उसका काम पाँच लाख की कार से चल सकता था, पर वह सोचता है कि दस लाख की कार क्यों न
लें क्योकि १० लाख की आय पर से एक लाख से अधिक आयकर के रूप में देना पड़ेगा क्यों न
आयकर न देकर मँहगी कार ही लें| अपने घर से तो कम ही रकम देना पड़ेगा| अगर आयकर न
देनी होती तो वह पाँच लाख की कार लेता और बचे पैसे को कल कारखाने में लगता लेकिन
टैक्स बचाने के चक्कर में उसने निवेश न करके उस राशि का औभोग कर लिया|
आयकर देश में एक छद्म
अर्थव्यवस्था का निर्माण करती है| व्यापारी आयकर बचाने के लिए दो नम्बर का कारोबार
करने लगता है| किसी व्यापारी को अपने व्यापर से दस लाख का मुनाफा हो रहा है , तो
उस पर उसे दस लाख पर टैक्स देना पड़ेगा| फिर वह दो नंबर से कारोबार करके उस दस लाख
को पाँच लाख करना चाहेगा, जिससे मिले तो लाभ के रूप में दस लाख , पर टैक्स उसे पाँच
लाख पर देना पड़ेगा| वह पाँच लाख ब्लैक मणि के रूप में उसके पास जमा हो गया, जिसे
वह कहीं भी जायज जगह पर निवेश नहीं कर पायेगा | अगर आयकर उसे नहीं देना पड़ता तो,
वह अपनी दस लाख की आमदनी को कहीं सही जगह निवेश करता| लेकिन उपभोग कर कैसे लगे?
पूरा देश डिजिटलाइजेशन की तरफ बढ़ रहा है सरकार प्लास्टिक मुद्रा को
चलन में ला रही है, लोगों को सरकार प्रोत्साहित करने के लिए कई योजनाएँ चला रही
है| हर गाँव में इंटरनेट, कम्पुटर, मोबाईल जैसी चीजें पहुँच गयी है|
एक अनुमान के अनुसार देश में प्रतिदिन ९८,८८,६७७/- लाख करोड़ का
बैंको में लेंन देंन होता है| लोग उपभोग की वस्तुओं की खरीद दुकानों मॉल से करते
है| अगर हमलोग पूर्णत: डिजिटलाइजेशन लागु कर दें तो बैंकों दुकानों या जहाँ कही भी
मुद्रा का आदान प्रदान होता है, वही एक प्रतिशत टैक्स के रूप में काट लिया जाय, तो
सरकार को अभी जितना टैक्स, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष के रूप में मिलता है, उसे इसको
अधिक टैक्स मिलेगा, और इसके संग्रह करने के लिए जितने सरकारी विभाग है उसकी भी कोई
आवश्यकता नहीं रहेगी | लोग अगर कमाई करेगे, तो उसका उपभोग भी करेंगे, और उपभोग को
वर्गीकृत करके टैक्स की एक डॉ तय की जय| दबी की खरीद पर कम और कार की खरीद पर अधिक
टैक्स लगायी जाय|
अगर हम आय कर की जगह उपभोग कर लगायेंगे तो हमारी मिश्रित
अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा रहेगा| अभी सोचनें की जरूरत है कि हम वर्तमान कर प्रणाली
को किस प्रकार बदलें, जिससे देश की जनता विकास में अपनी सही भागीदारी दें सकें|
जब एक बार चाणक्य से किसी ने पूछा कि राजा को अपने राज्य की जनता
से किस प्रकार कर लेना चाहिए तो चाणक्य ने फूल पर बैठे भौरों को दिखाकर कहा कि जिस
प्रकार फूल पर बैठकर भौरों फूल के रस को
ले लेता है और फूल अपना रस ख़ुशी-ख़ुशी उसे दे देता है, उसी प्रकार सरकार को कर लेना
चाहिए, यानि कष्ट पूर्ण टैक्स की व्यवस्था, लोगों को टैक्स चोरी करने की तरफ
प्रेरित करती है|
टैक्स से प्राप्त पैसों का भी अनुत्पादक खर्चो में उपभोग से देश
की अर्थव्यवस्था लडखडाती है |
आयकर की विसंगतियों से बचने का एक ही उपाय है आय की जगह उपभोग पर
कर लगाया जाये |
(लेखक डॉ अजित kumar पाठक , पटना
उच्य न्यायालय के अधिवक्ता है और अर्थशास्त्र, आयकर के ज्ञाता है)
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