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नया इलेक्टोरल बाँण्ड: क्या चुनावी चंदे का गणित बदल पायेगा?


नया इलेक्टोरल बाँण्ड: क्या चुनावी चंदे का गणित बदल पायेगा?

    

 डा॰ अजित कुमार पाठक



देशमें पारदर्शी चुनाव व्यवस्था की मांग वर्षों से उठायी जा रही है। भारतीय जनतंात्रिक व्यवस्था में चंदा और चुनाव का अन्योनाश्रय संबंध है। इसी संदर्भ में बजट में चुनावी चंदे को पारदर्शी बनाने के लिए पार्टियों को चंदा देने के लिए फाइनेशियल इन्स्टूमेंट (बाॅन्ड) के माध्यम से ही देने की रूप रेखा का प्रस्ताव दिया था, जिसकी विस्तृत रूप रेखा वित्तमंत्री ने 2 जनवरी 2018 को संसद के सामने रखा।
रिपे्रजेंटेशन आॅफ पीपुल्स एक्टके सेक्शन 29वीं में प्रावधान है कि कोई भी राजनैतिक दल किसी भी व्यक्ति या कंपनी के द्वारा स्वेच्छा से दी गयी किसी भी रकम को स्वीकार कर सकती है। लेकिन इसमें चन्दा देने लेने के लिए न कोई रकम निर्धारित था, न चन्दा लेने का माध्यम निर्धारित था पर धीरे-धीरे इस प्रणाली में सुधार होता गया।
02 जनवरी 2018 को संसद में माननीय वित्तमंत्री के द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार अब कोई भी व्यक्ति या कंपनी किसी राजनैतिक पार्टी को नकद न देकर चंदा इलेक्टोरल बाण्ड के माध्यम से देगा। जिसे वह व्यक्ति, कम्पनी या संस्था रिजर्व बैंक आॅफ इण्डिया का उसके द्वारा प्राधिकृत बैंक के माध्यम से खरीदेगा। बैंकमें ये बाण्ड एक हजार, दस हजार, एक लाख, दस लाख और एक करोड़ के मूल्य में उपलब्ध होगें। ये बाण्ड केन्द्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट वर्ष की प्रत्येक तिमाही यानी जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर माह में केवल हर माह 10 दिनों के लिए उपलब्ध होंगे। यह बाण्ड एक निश्चिय अवधि के लिए मान्य होगें यानी इसकी मियाद 15 दिनों के लिए होगी, अर्थात दानकत्र्ता द्वारा अपने पसंदीदा राजनैतिक दल को चंदे के रूप में इस बाण्ड को दिये जाने के केवल पंद्रह दिनों के भीतर इसे भुना लेना पड़ेगा।
इस बाण्ड को भारत को कोई भी व्यक्ति कंपनी या संस्था, निर्दिष्ट बैंकों की शाखाओं से निर्धारित तिथि को खरीदेगा। बाण्ड खरीदने वाले को अपनी सारी जानकारी (के. वाई. सी.) उस बैंक को देनी होगी, जहां से वह इलेक्ट्रोरल बाण्ड खरीदेगा। बैंक के पास दानकत्र्ता की सारी जानकारी तो रहेगी, पर बाॅण्ड में दानकत्र्ता का कोई नाम पता या पहचान नहीं रहेगी। ब्याज मुक्त ये बाण्ड बियरर चेक की तरह होगा। इस बाॅण्ड को पिपुल्स रिप्रेजेटेशन एक्ट 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत राजनीतिक दल को दिया जायेगा और जिसे पिछले चुनाव में उस दल को कम से कम एक प्रतिशत वोट मिला हो ।
वर्ष 2017 के बजट से पहले इस संबंध में यह नियम था कि यदि किसी राजनैतिक दल को 20,000 रूपये से कम का चंदा मिलता था तो उसे उस चंदे का स्त्रोत बताने की आवश्यकता नहीं थी। इस नियम का फायदा राजनीतिक दल उठाते थे और नेताओं एवं अन्य व्यक्तियों की कमाई को भी बीस हजार से कम जाली नाम पता देकर उस ेचंदा में प्राप्त रकम दिखाकर कालाधन बनाते थे, और चुनावों में उसका दुरूपयोग होता था । इस संबंध में पटना हाइकोर्ट में 2013 में ही टैक्सपेयर्स फोरम के द्वारा भी एक याचिका दायर की गई थी, जो अभी तक अनिर्णित है। पिछले बजट में इस गुप्त दान की सीमा को घटाकर 2 हजार कर दिया गया यानी दो हजार से ज्यादा नकद चंदा लेने पर राजनीतिक दलों को बताना होगा कि उसे किससे चन्दा मिला है।
कहने को तो सरकार का यह कदम चुनाव प्रणाली में चंदे की पारदर्शिता के लिए उठाया गया है, पर इस इलेक्टोरल बाॅण्ड में बहुत ओल-झोल है मसलन यह बाॅण्ड बेनामी होगा, यानी देने वाले को तो पता होगा कि उसने किसको चंदा दिया है पर लेने वाले को यह पता नहीं होगा कि उसे किससे चन्दा मिला । इसमें पारदर्शिता का अभाव है। इस बाॅण्ड को लाने से पहले कंपनी एक्ट में संशोधन प्रस्तावित है कि कंपनी के बत्र्तमान लाभ के साढ़े सात प्रतिशत से अधिक चंदा देने की सीमा को हटाकर दिया जाय, यानी कोई कंपनी अपना पूरा मुनाफा किसी राजनीतिक पार्टी को दे सकती है, इस इलेक्टोरल बाॅण्ड के माध्यम से । यानी कालेधन को चन्दा के रूप में देकर सफेद करने का यह एक नायाव तरीका हो जायेगा। इसमें चंदा देने वाले और लेने वाले को पता फायदा होगा, पर देश को कंपनियों के लाभ में देशको कोई टैक्स नहीं मिलेगा।
मिला जुला कर इस व्यवस्था में चुनावी चंदे की पारदर्शिता तो नहीं दिखाई पड़ती है, पर इस व्यवस्था में सरकार में रहे दलों को अप्रत्यक्ष रूपसे फायदा होगा। सरकारी मशीनरी के पास किसी न किसी रूपसे पता चल जायेगा कि किस व्यक्ति कंपनी या संस्था ने कितने का इलेक्ट्रोरल बाॅण्ड खरीदा है और चन्दा देने वालों पर वह चन्दा देने के लिए दबाब बना सकता है।
हमारी समझ से इतना झंझट करने से अच्छा होता कि सारे नियमों की जगह राजनीतिक दलों को दी जार्ने वाली किसी भी राशि को डिजिटल पेमन्ट के माध्यम से ही दिया जाना अनिवार्य की जाय।
कंपनियों को भी अपनी कुल आय से दो प्रतिशत से अधिक राजनीतिक दलोंको चन्दा देने पर रोक लगाया जाय, एवं चन्दा देने वाले और चन्दा लेने वाले का नाम सार्वजनिक किया जाय।
अगर यह सब नहीं किया गया तो चुनावी पारदर्शिता के नाम पर यह सरकारी ढकोसला ही साबित होगा, और इसका फायदा पूर्व की भांति  वो सब लेंगे, जो आज तक इसे लेते आये हैं ।

            डाॅ॰ अजित कुमार पाठक
            अधिवक्ता
            (लेखक टैक्सपेयर्स फोरम के अध्यक्ष हैं,
            और पटना हाईकोर्ट में अधिवक्ता है।)


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