आर्थिक हालत और वर्तमान स्थिति
डॉ राकेश दत्त
मिश्र मार्च के (दिव्य रश्मि में सम्पादकीय में छपा आलेख )
भारत की अर्थव्यवस्था की रफ्तार
बढ़ाने के नरेंद्र मोदी सरकार के प्रयासों लगातार तगड़ा झटका लगता चला जा रहा है जब एक – एक कर के
कई बैंक डूबते चले जा रहें है पहले पीएमसी और अब यस बैंक | यस बैंक के परेशानी में फंसने से इसके जमाकर्ताओं
में हड़कंप मच गया है। बदहवास हालत में वे बैंक के एटीएम पर पहुंच रहे हैं,
लेकिन पैसे निकल नहीं रहे। शाखाओं में खलबली मची है, वहां भी न पैसे दिए जा रहे हैं, न कोई दूसरी गतिविधि
हो रही है। ग्राहकों को अपने पैसे डूबने की आशंका सता रही है। शेयर बाजार पर इस
घटना का बहुत बुरा असर पड़ा है।
लोगों के जेहन में कुछ ही समय पहले
दिवालिया हुए पीएमसी बैंक की याद ताजा हो गई है। उसके ग्राहकों ने पैसे पाने के
लिए प्रदर्शन किया था, जिसमें
एक व्यक्ति की मौत तक हो गई थी। वैसे रिजर्व बैंक और सरकार इस बार सचेत हैं कि
हालात उतने न बिगड़ें।
रिजर्व बैंक ने यस
बैंक के बोर्ड का संचालन अपने हाथों में लेते हुए इससे महीने में 50 हजार रुपये तक की निकासी सीमा
बांध दी है, जबकि सरकार ने भारतीय स्टेट बैंक और अन्य
वित्तीय संस्थानों को यस बैंक को खरीद लेने की दिशा में आगे बढ़ने की मंजूरी दे दी
है। इधर तीन-चार वर्षों से यस बैंक की वित्तीय सेहत लगातार बिगड़ रही थी। बैंक ने
जिन कंपनियों को लोन दिया उनमें अधिकतर घाटे में हैं या दिवालिया हो चुकी हैं।
पैसे वापस लौटने का सिलसिला टूटा तो बैंक का हाल बिगड़ने लगा।
नुकसान से बचने के लिए उसने पूंजी जुटाने
की कोशिश की। इससे उसकी रेटिंग खराब हुई और निवेशकों, जमाकर्ताओं ने अपना पैसा निकालना शुरू
कर दिया। बैंक प्रबंधन अपना घाटा छिपाता रहा। वित्त वर्ष 2018-19 में यस बैंक ने करीब 3,277 करोड़ रुपये के एनपीए को
अपने खाते में दिखाया ही नहीं। रिजर्व बैंक को उसने इस झांसे में रखा कि बैंक को
जल्द ही बड़े पैमाने पर निवेश मिलने जा रहा है। लेकिन मैनेजमेंट के पास निवेश के
लिए कोई ठोस प्रस्ताव नहीं था। हाल तो अभी भारत के समूचे बैंकिंग सेक्टर का ही बुरा है।
ज्यादातर सरकारी बैंक खस्ताहाल हैं। कुछ
बड़े नॉन बैंकिंग फिनांशल इंस्टीट्यूशन एक झटके में डूब गए। यह भारतीय
अर्थव्यवस्था के लिए भारी चिंता का विषय है। समस्या की जड़ कुछ हद तक उद्योग और
व्यापार की सुस्ती से जुड़ी है, लेकिन कर्ज लेकर न लौटाने की बीमारी हमारे यहां बहुत पुरानी है। इस पर रोक
तभी लगेगी जब बैंकों के कर्ज को घर की खेती समझने वालों में खौफ पैदा हो।
पिछले कुछ सालों में विकास को गति देने के
नाम पर कई उद्यमियों को आंख मूंदकर कर्ज बांटे गए, जिनमें कई भगोड़े हो चुके हैं। इसके अलावा बैंकों ने कई
योजनाओं के तहत भी अंधाधुंध ऋण बांटे हैं, जिनकी वापसी की
कोई गारंटी नहीं है। अभी यस बैंक के ग्राहकों की जमापूंजी लौटाना सरकार का पहला
फर्ज होना चाहिए ताकि उनका विश्वास सिस्टम में बना रहे। अगर आम आदमी का भरोसा
अर्थतंत्र से उठ गया तो इसे बहाल करने में लंबा वक्त लगेगा।
वैसे
भारतीय अर्थव्यवस्था की इस स्थिति के लिए देश के कर्ताधर्ताओं में कोई माने या ना
माने, लेकिन यह कटु
सत्य है कि कहीं ना कहीं यह मानव जनित आपदा है। सरकार के कुछ गलत आर्थिक निर्णयों
के चलते आज भारत की अर्थव्यवस्था बेहद मंदी के नाजुक दौर से गुजर रही है। देश में
स्थिति यह हो गयी है कि भारतीय बाजार पर उसका दुष्प्रभाव अब आकड़ों की बाजीगरी के
बाद भी छिपाया नहीं जा सकता है। लेकिन फिर भी ना जाने क्यों देश के नीतिनिर्माता
स्थिति की गम्भीरता को अब भी समझने के लिए तैयार नहीं हैं, वो
इस हालात को या तो जानबूझकर समझने के लिए तैयार नहीं है या यह भी हो सकता है कि
उनकी टीम में शामिल लोग अर्थव्यवस्था को कमजोर करने वाले ठोस कारकों को पकड़ नहीं
पा रहे हो। खैर अर्थव्यवस्था कितनी भी खस्ताहाल बेहाल हो, लोगों
को बेशक रोजीरोटी रोजगार ना मिल रहा हो उससे हमारे देश के चंद ताकतवर राजनेताओं पर
कुछ असर नहीं पढ़ता है वो अब भी लोगों को बरगला के हिन्दू-मुसलमान , मंदिर-मस्जिद में उलझा कर भीड़तंत्र का बेहुदा माहौल बनाने में व्यस्त है।
सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि वो भारत जैसे विकासशील देश की तुलना बात-बात में हर
मोर्चे पर असफल पाकिस्तान से करके भारतीय जनसमूह से खूब तालियां बटोरते हैं।
वर्तमान
में देश की अर्थव्यवस्था के इस हालात के लिए उच्च जीएसटी दरें, कृषि क्षेत्र में संकट, वेतनभोगियों
के वेतन में कमी और नकदी की कमी आदि कारक की वजह से देश को भारी मंदी का सामना
करना पड़ रहा है। साथ ही अर्थशास्त्रियों के अनुसार उपभोग में भारी मंदी के रुझान,
जीडीपी विकास दर में लगातार गिरावट का सबसे प्रमुख कारण है। जिसके
चलते भारतीय अर्थव्यवस्था के मजबूत स्तंभ ऑटोमोबाइल, पूंजीगत
वस्तुएं, बैंक, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स,
एफएमसीजी और रियल एस्टेट आदि सहित देश के सभी प्रमुख सेक्टरों में
भारी गिरावट आई है। जोकि अर्थव्यवस्था में मंदी का माहौल पैदा कर रहे हैं।
लेकिन
फिर भी अपनी हठधर्मिता वाली नीति के चलते अब भी सरकार में बैठे कुछ लोग स्थिति को
सामान्य बता रहे हैं। इस स्थिति में कहा जा सकता है कि देश की अर्थव्यवस्था की
सरकार जितनी गुलाबी तस्वीर पेश कर रही है। हकीकत में धरातल पर हालात सामान्य नहीं
हैं। इस स्थिति के लिए वजह चाहे जो भी हो लेकिन सरकार को चाहिए की वो तत्काल
अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए सही नीतियों की संजीवनी बूटी की ताकतवर डोज
प्रदान कर, इस
गम्भीर बीमारी का उपचार कर संकटग्रस्त देशवासियों को राहत प्रदान करें। क्योंकि आजकल
आर्थिक स्थिति को लेकर जमीन स्तर पर जो स्थिति बनती जा रही है वो देशहित में व
आमजनमानस के हित में ठीक नहीं है। अब लोगों से उनकी रोजीरोटी रोजगार छिनने लगा है
जिससे आमजन को भारी दिक्कत होने लगी है, देश में लोगों की
नौकरी जा रही नये रोजगार पैदा होने के अवसर दिनप्रतिदिन खत्म होते जा रहे हैं।
जिसके चलते अब देश के आमजनमानस को लगने लगा है कि सरकार आर्थिक मोर्चे पर पूर्ण
रूप से विफल है और स्थिति उनके नियंत्रण से दिनप्रतिदिन बाहर होती जा रही है,
जो हालत चिंतनीय हैं।
खस्ताहाल
अर्थव्यवस्था की हालत पर भाजपा सरकार के नेता भले ही कहें कि कुछ लोगों को उनकी
सरकार की आलोचना करने में मजा आता है। लेकिन हक़ीक़त यह है कि अर्थव्यवस्था के कई
क्षेत्र इन दिनों बहुत संकट में हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक़ निजी निवेश में मंदी
की हालत में सुधार के संकेत जल्द दिखाई नहीं दे रहे है। देश को धन उपलब्ध करवाने
वाला बैंकिंग क्षेत्र फंसे क़र्ज़ (एनपीए) की समस्या से बेहाल है। कोयला, क्रूड ऑयल, प्राकृतिक गैस,
रिफाइनरी प्रोडक्ट्स, उर्वरक, सीमेंट, बिजली और इस्पात देश के आठ महत्वपूर्ण कोर
सेक्टर हैं। इन सेक्टर का देश के औद्योगिक उत्पादन इंडेक्स में लगभग 40 फीसदी का योगदान है। लेकिन वैश्विक मोर्चे पर बिगड़ती स्थितियों के बीच
निजी निवेश और उपभोक्ता मांग में जबरदस्त सुस्ती के चलते भारत की आर्थिक वृद्धि
लगातार कम होती जा रही है। जिसका उत्पादन वृद्धि और रोजगार सृजन पर भी दबाव पड़ा
है। आईएचएस मार्किट का इंडिया मैन्यूफैक्चरिंग पर्चेजिंग मैनेजर्स सूचकांक
(पीएमआई) निचले स्तर पर है। लागत बढ़ने और डिमांड घटने की वजह से मैन्युफैक्चरिंग
सेक्टर की ग्रोथ में कमी आई है। PMI इंडेक्स घट रहा है।
सोचने वाली बात यह है कि देश के कई क्षेत्रों में विकास की रफ्तार एकदम थम सी गयी
है। मंदी की मार के चलते कमजोर होती अर्थव्यवस्था के ये हालात खुद प्रधानमंत्री
मंत्री नरेंद्र मोदी के “फॉइव ट्रिलियन इकॉनमी” के सपने के लिए बेहद घातक है। अगर भारतीय अर्थव्यवस्था इसी तरह के ढ़र्रे
पर चलती रही तो यह तय है कि मोदी का “फॉइव ट्रिलियन इकॉनमी”
का सपना जल्द पूरा नहीं होने वाला है। जो स्थिति आर्थिक रूप से देश
की जनता के लिए व राजनैतिक रूप से भाजपा के लिए सही नहीं है। मंदी के यह हालात
तेजी से विकास के पथ पर चलकर विकसित बनने के कतार में शामिल विकासशील भारत के लिए
भी बेहद चिंताजनक है। इसलिए सरकार को मंदी की स्थिति से निपटने के लिए तत्काल
प्रभावी कदम उठाने होंगे ।
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