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सिपाही

सिपाही 

कवि चितरंजन 'चैनपुरा' , जहानाबाद, बिहार

सर्दी गर्मी वर्षा सबमें चलने वाला राही हूँ ।
घर को छोड़ सड़क पर जीने वाला सही सिपाही हूँ ।।

कोई भले सोया बैठा हो मैं तो सदा खड़ा रहता ।
पल-प्रतिपल कर्तब्यमार्ग पर तनकर डटा अड़ा रहता ।।
स्वयं स्तित्व मिटाकर अपना औरों की परछाहीं हूँ !
घर को छोड़ सड़क पर सबदिन जीता वही सिपाही हूँ !

सख्ती बरतूँ नरमी बरतूँ कुछ में मेरा खैर नहीं ।
होता न एहसास किसी को अपना हूँ मैं गैर नहीं !
ताने सहते कभी कर्म में करता नहीं कोताही हूँ !
घर को छोड़ सड़क पर सब दिन जीता हुआ सिपाही हूँ !

औरों का हो दोष पुलिसवालों से सभी उलझते हैं ।
प्राकृतिक या कृत्रिम संकट मुझसे सभी सुलझते हैं ।।
दिन या रात विषम स्थितियों का हरदम हमराही हूँ ।
घर को छोड़ सड़क पर सबदिन जीता हुआ सिपाही हूँ ।।

शासक या साधारण जन मुझपर ही सदा गड़ाये नैन ।
सीमा या सुनसान जगह सब ओर मुझी से है चितचैन ।।
सैल्युट करते मातृभूमि को शहंशाह मैं शाही हूँ ।
घर को छोड़ सड़क पर सबदिन जीता वही सिपाही हूँ ।।


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