है कैसा कोरोना हो !
हाहाकार मचा है जग में लगा है रोना-धोना हो !
ढाये कहर कोहराम मचाये है कैसा कोरोना हो !
कन्या के जिन कोमल कर में मेंहदी आज रचानी थी ।
किसे पता उन हाथों को ही सेनेटाइज्ड करानी थी ।।
छोड़ सभा मण्डप की शोभा पकड़े घर का कोना हो !
ढाये कहर कोहराम मचाये है कैसा कोरोना हो !
परिणय-सूत्र में बंध जिनको लेने थे अग्नि के फेरे ।
आज वही दूल्हा-दुल्हन एक दूजे से हैं मुँह फेरे ।।
रखे रहे सब वस्त्राभूषण घर में साड़ी सोना हो !
ढाये कहर कोहराम मचाये है कैसा कोरोना हो !
कोई पड़ा बीमार पास कोई जाने को तइयार नहीं ।
बंद है वायुयान ट्रेन अब आये घर परिवार नहीं ।।
श्मसान तक कन्धे पर कोई चाहै लाश न ढोना हो ।
ढाये कहर कोहराम मचाये है कैसा कोरोना हो !
हहर रहा है हृदय हुई मानव से मानव की दूरी
मना हुआ चुम्बन आलिंगन मास्क पहनना मजबूरी ।।
दुःख की घड़ियाँ छँट जायेंगी तुम चितचैन न खोना हो !
ढाये कहर कोहराम मचाये है कैसा कोरोना हो !
कवि चितरंजन 'चैनपुरा' , जहानाबाद, बिहार, 804425