चैत्र शुक्ल प्रतिपदा ही है हिन्दू संस्कृति के अनुसार नव वर्षारंभ - श्री. गुरुराज प्रभु, सनातन संस्था वाराणसी
सनातन संस्था के श्री. गुरुराज प्रभु ने सभी हिन्दुओं को चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन मनाई जानेवाली नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं देकर इस दिन नववर्ष आरंभ क्यों है, इसके संदर्भ में धर्मशास्त्र बताया, जो इस प्रकार है :
१. वर्षारंभदिन दिन अर्थात नववर्षदिन

अ. वर्षारंभ मनाने का नैसर्गिक कारण
भगवान श्रीकृष्णजी अपनी विभूतियों के संदर्भ में बताते हुए श्रीमद्भगवद्गीता में कहते हैं,
बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम् ।
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः ।। - (श्रीमद्भगवद्गीता – १०.३५)
इसका अर्थ है, ‘सामों में बृहत्साम मैं हूं । छंदों में गायत्रीछंद मैं हूं । मासों में अर्थात् महीनों में मार्गशीर्षमास मैं हूं; तथा ऋतुओं में वसंतऋतु मैं हूं ।’
सर्व ऋतुओं में बहार लानेवाली ऋतु है, वसंत ऋतु । इस काल में उत्साहवर्द्धक, आह्लाददायक एवं समशीतोष्ण वायु होती है । शिशिर ऋतु में पेडों के पत्ते झड चुके होते हैं, जबकि वसंत ऋतु के आगमन से पेडों में कोंपलें अर्थात नए कोमल पत्ते उग आते हैं, पेड-पौधे हरे-भरे दिखाई देते हैं । कोयल की कूक सुनाई देती है । इस प्रकार भगवान श्रीकृष्णजी की विभूतिस्वरूप वसंतऋतु के आरंभ का यह दिन है ।
आ. वर्षारंभ मनाने के ऐतिहासिक कारण
शकों ने हूणों को पराजित कर विजय प्राप्त की एवं भारतभूमिपर हुए आक्रमण को मिटा दिया । शालिवाहन राजा ने शत्रुपर विजय प्राप्त की और इस दिन से शालिवाहन पंचांग प्रारंभ किया ।
इ. वर्षारंभ मनाने के पौराणिक कारण
इस दिन रामने वाली का वध किया । राक्षसों का एवं रावण का वध कर इसी दिन भगवान श्रीरामचंद्र अयोध्या लौटे ।
२. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन वर्षारंभदिन मनाने के विविध अध्यात्मशास्त्रीय कारण
भिन्न- भिन्न संस्कृति अथवा उद्देश्य के अनुसार नववर्ष का आरंभ भी विभिन्न तिथियोंपर मनाया जाता हैं । उदाहरण, ईसाई संस्कृति के अनुसार इसवी सन् १ जनवरी से आरंभ होता है, जबकि हिन्दू वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होता है । आर्थिक वर्ष १ अप्रैल से आरंभ होता है, शैक्षिक वर्ष जून से आरंभ होता है, जबकि व्यापारी वर्ष कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होता है । इन सभी वर्षारंभों में से अधिक उचित नववर्ष का आरंभ दिन है, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा ।
अ. ब्रह्मांड की निर्मिति का दिन
ब्रह्मदेवने इसी दिन ब्रह्मांड की निर्मिति की । उन के नामपर ही ‘ब्रह्मांड’ नाम प्रचलित हुआ । सत्ययुग में इसी दिन ब्रह्मांड में विद्यमान ब्रह्मतत्त्व पहली बार निर्गुण से निर्गुण-सगुण स्तरपर आकर कार्यरत हुआ तथा पृथ्वीपर आया ।
आ. सृष्टि के निर्माण का दिन
ब्रह्मदेवने सृष्टि की रचना की तदूपरांत उस में कुछ उत्पत्ति एवं परिवर्तन कर उ से अधिक सुंदर अर्थात परिपूर्ण बनाया । इसलिए ब्रह्मदेवद्वारा निर्माण की गई सृष्टि परिपूर्ण हुई, उस दिन गुडी अर्थात धर्मध्वजा खडी कर यह दिन मनाया जाने लगा ।
चैत्रे मासि जगद् ब्रम्हाशसर्ज प्रथमेऽहनि । – ब्रम्हपुराण
अर्थात ब्रम्हाजीने सृष्टि का निर्माण चैत्र मास के प्रथम दिन किया । इसी दिन से सत्ययुग का आरंभ हुआ । यहीं से हिन्दू संस्कृति के अनुसार कालगणना भी आरंभ हुई । इसी कारण इस दिन वर्षारंभ मनाया जाता है । यह दिन महाराष्ट्र में ‘गुडीपडवा’ के नाम से भी मनाया जाता है । गुडी अर्थात् ध्वजा । पाडवा शब्द में से ‘पाड’ अर्थात पूर्ण; एवं ‘वा’ अर्थात वृद्धिंगत करना, परिपूर्ण करना । इस प्रकार पाडवा इस शब्द का अर्थ है, परिपूर्णता ।
३. ब्रह्मतत्त्व के सर्वाधिक प्रक्षेपण का दिन
अन्य दिनों की तुलना में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ब्रह्मदेव की ओर से सगुण-निर्गुण ब्रह्मतत्त्व,ज्ञानतरंगें, चै तन्य एवं सत्त्वगुण का ५० प्रतिशत से भी अधिक मात्रा में प्रक्षेपण होता है ।
४. प्रजापति तरंगें सर्वाधिक मात्रा में पृथ्वीपर आना
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन प्रजापति तरंगें सब से अधिक मात्रा में पृथ्वीपर आती हैं । इस दिन सत्त्वगुण अत्यधिक मात्रा में पृथ्वीपर आता है । यह दिन वर्ष के अन्य दिनों की तुलना में सर्वाधिक सात्त्विक होता है । प्रजापति तरंगें आने के कारणवनस्पति के अंकुरने की भूमि की क्षमता में वृद्धि होती है । बुद्धि प्रगल्भ बनती है । कुओं-तालाबों में नए झरने निकलते हैं ।
५ . वातावरण अधिक चैतन्यदायी रहना
इस दिन भूलोक के वातावरण में रजकणों का प्रभाव अधिक मात्रा में होता है, इस कारण पृथ्वी के जीवों का क्षात्रभाव भी जागृत रहता है । इस दिन वातावरण में विद्यमान अनिष्ट शक्तियों का प्रभाव भी कम रहता है । इस कारण वातावरण अधिक चैतन्यदायी रहता है ।
६. साढेतीन मुहूर्तों में से एक मुहूर्त
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अक्षयतृतीया एवं दशहरा,प्रत्येक का एक एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा का आधा, ऐसे साढेतीन मुहूर्त होते हैं । इन साढेतीन मुहूर्तों की विशेषता यह है, कि अन्य दिन शुभ कार्य हेतु मुहूर्त देखना पडता है; परंतु इन चार दिनों का प्रत्येक क्षण शुभमुहूर्त ही होता है ।
अंत में सनातन संस्था के श्री. गुरुराज प्रभु ने सभी हिन्दुओं का आवाहन करते हुए कहा कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर नववर्ष मनाकर इसका आध्यात्मिक स्तर पर लाभ लेें ।