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बैक्टीरिया और वायरस को नष्ट करने वाले प्रकृति के कुछ अनमोल उपहार

बैक्टीरिया और वायरस  को नष्ट करने वाले प्रकृति के कुछ अनमोल उपहार  

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                           योगी योगानंद { योग एवं ऊर्जा विशेषज्ञ  }

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तुलसी====
तुलसी को विष्णुप्रिया कहा जाता है। हिन्दुओं के प्रत्येक शुभ कार्य में, भगवान के प्रसाद में तुलसीदल का प्रयोग होता ही है। जहाँ तुलसी के पौधे अत्यधिक मात्रा में होते हैं, वहाँ की हवा शुद्ध और पवित्र रहती है। तुलसी के पत्तों में एक विशिष्ट तेल होता है जो कीटाणुयुक्त वायु को शुद्ध करता है। बैक्टीरिया और वायरस  का नाश होता है। तुलसी के पास बैठकर प्राणायाम करने से बैक्टीरिया और वायरस का नाश होकर शरीर में बल, बुद्धि और ओज की वृद्धि होती है। प्रातः खाली पेट तुलसी का रस और पानी पी लिया जाये तो बल, तेज और यादशक्ति में वृद्धि होती है।

तुलसी में एक विशिष्ट क्षार होता है। जिसके मुँह में से दुर्गन्ध आती हो वह व्यक्ति यदि तुलसी के थोड़े बहुत पत्ते नित्य ही खाये तो उसकी दूर्गन्ध दूर हो जाती है, मन-वाणी वश में रहते हैं। तुलसी का तो स्पर्श और दर्शन भी लाभदायी है। भगवान विष्णु को तीन चीजें अति प्रिय हैं- भगवान शंकर, तुलसी और आँवला। तुलसी की पूजा अपने देश में होती है उसका कारण उसकी सर्वाधिक गुणवत्ता है।

तुलसी शरीर की विद्युत को बनाये रखती है।  तुलसी की माला धारण करने वाले को बहुत से रोगों से मुक्ति मिलती है।

तुलसीदल एक उत्कृष्ट रसायन है। वह गर्म और त्रिदोषनाशक है। रक्तविकार, ज्वर, वायु, खाँसी, कृमि-निवारक है तथा हृदय के लिए हितकारक है। सफेद तुलसी के सेवन से त्वचा, मांस और हड्डियों के रोग दूर होते हैं। काली तुलसी के सेवन से सफेद दाग दूर होते हैं। तुलसी की जड़ और पत्ते ज्वर में उपयोगी हैं। वीर्यदोष में बीज उत्तम है। तुलसी की चाय पीने से ज्वर, आलस, सुस्ती तथा वात-पित्त विकार दूर होते हैं, भूख बढ़ती है। तुलसी की चाय में तुलसीदल, सोंफ, इलायची, पुदीना, सोंठ, काली मिर्च, ब्राह्मी, दालचीनी आदि का समावेश किया जा सकता है। तुलसी, काली मिर्च एवं शहद का सम्मिश्रण कर गोलियाँ बनाकर 1-1 ग्राम सुबह, दोपहर, शाम व रात्रि में लेने से ज्वर दूर हो जाता है।

तुलसी सौन्दर्यवर्धक है, रक्त शोधक है। सुबह-शाम तुलसी का रस और नींबू का रस साथ मिलाकर चेहरे पर घिसने से काले दाग दूर होते हैं और सुन्दरता बढ़ती है। तुलसी के पत्ते खाकर दूध नहीं पीना चाहिए। मलेरिया के ज्वर में तुलसी उपयोगी है। ज्वर, खाँसी, श्वास के रोग में तुलसी का रस 3 ग्राम, अदरक का रस 3 ग्राम और एक चम्मच शहद लेने से लाभ होता है। इससे कफ निकलकर श्वास ठीक होता है। तुलसी के रस से जठराग्नि प्रदीप्त होती है। तुलसी कृमिनाशक है। तुलसी के रस में नमक डालकर नाक में बूँदें डालने से मूर्च्छा हटती है। हिचकी रुकती है। तुलसी किडनी की कार्यशक्ति को बढ़ाती है। रक्त में स्थित कोलेस्टरोल को नियमित करती हैं। नित्य सेवन से एसिडिटी मिट जाती है, स्नायुओं का दर्द, सर्दी-जुकाम, मेदवृद्धि, मासिक सम्बन्धी रोग, दुःख, बच्चों के रोग, विशेषकर सर्दी, कफ, दस्त, उल्टी आदि में लाभ करती है। हृदयरोग में आश्चर्यजनक लाभ करती है। अँतड़ियों के रोगों के लिए तो तुलसी रामबाण है।

फ्रेन्च डॉक्टर विक्टर रेसीन ने कहा हैः "तुलसी एक अदभुत औषधि (Wonder Drug) है। तुलसी पर किये गये प्रयोगों ने सिद्ध कर दिया है कि ब्लडप्रेशर के नियमन, पाचनतंत्र के नियमन, रक्तकणों एवं रोग प्रतिरोधक  शक्ति में  बढ़ौती एवं मानसिक रोगों मे तुलसी अत्यंत लाभकारी है। मलेरिया तथा अन्य प्रकार के बुखारों में तुलसी अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुई है।"

तुलसी रोग तो दूर करती ही है, तदुपरांत ब्रह्मचर्य की रक्षा में एवं यादशक्ति बढ़ाने में भी अनुपम सहायता करती है।
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नींबू का रस=======
शरीर मे जो अम्लता (खटाई) का विष उत्पन्न होता है, नींबू  बैक्टीरिया और वायरस को नष्ट करता है। नींबू में स्थित पोटेशियम अम्ल विषों को नष्ट करने का कार्य करता है। प्रचुर मात्रा में स्थित विटामिन 'सी' शरीर की रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाता है और स्कर्वी के रोगों में उपयोगी है। नींबू हृदय को स्वस्थ रखता है। हृदय के रोगों में अंगूर से भी अधिक लाभ करता है।

नींबू प्रतिअम्लक है। अन्य फलों की तुलना में इसमें क्षारीयता का प्रमाण अधिक है। नींबू का रस जंतुनाशक है। दोषी आहार-विहार के कारण शरीर में यूरिक एसिड बनता है। उसका नाश करने के लिए प्रातः खाली पेट में गर्म पानी नींबू का रस लेना चाहिए। अदरक का रस भी उपयोगी है। पेशाब द्वारा नींबू यूरिक ऐसिड को निकालता है। साथ-साथ कब्ज, पेशाब में जलन, लहू में खराबी, मंदाग्नि, रक्तविकार और त्वचा के रोगों के लिए तो यह अक्सीर इलाज है। नींबू के रस से दाँत और मसूढ़ों की अच्छी सफाई होती है। पायरिया और मुख की दुर्गन्ध को वह दूर कर देता है। यकृत की शुद्धि के लिए नींबू अक्सीर है। नींबू का साईट्रिक ऐसिड भी यूरिक एसिड का नाश करता है। अजीर्ण, छाती में जलन, संग्रहणी, कालेरा, कफ, सर्दी, श्वास आदि में औषधि का काम करता है। नींबू के रस में टाइफाईड के जंतुओं का तुरन्त नाश होता है। खाली पेट नींबू का रस अनुपयोगी विषैला एसिड पैदा करने वाले कृमि का नाश करता है। नींबू के सेवन से पित्त शांत होता है। मुँह में से पड़ती लार बंद होती है। डॉ. रेडीमेलर लिखते हैं कि थोड़े ही दिनों तक नींबू के सेवन से नींबू के रक्तशोधक गुण का पता चल जाता है। रक्तशुद्धि होते ही शरीर में खूब ताजगी महसूस होती है। लहू में से विषैले तत्त्वों का नाश होते ही शरीर की मांसपेशियों को नया बल मिलता है। नींबू समस्त शरीर की सफाई करता है। आँखों का तेज बढ़ाता है। जिन कुटुम्बों में लोग प्रतिदिन एक नींबू का उपयोग करते हैं, वहाँ प्रत्येक स्वस्थ, सुखी और प्रसन्न रहते हैं।

गर्म पानी में नींबू का रस शहद मिलाकर लेने से सर्दी, कफ, इन्फलुएन्जा आदि में पूरी राहत मिलती है। नींबू, शहद का पानी लेते रहकर लम्बे समय तक उपवास द्वारा चिकित्सा हो सकती है।

सावधानीः कफ, खाँसी,  दमा, शरीर में दर्द के स्थायी रोगियों को नींबू नहीं लेनी चाहिए। रक्त का निम्न दबाव, सिरदर्द आदि |

3मधु (शहद)=========
मधु प्रकृति द्वारा मनुष्य को उत्तम भेंट है जो पंचामृत में से एक अमृत है। मधु आयुर्वेद में अधिकांश भाग की दवाइयों के लिए श्रेष्ठ अनुपान है। प्राकृतिक रूप से मधु में विपुल राशि में शर्करा होती है। मधु तुरन्त शक्ति और गर्मी देकर मांसपेशियों को बल प्रदान करता है। रात में एक चम्मच शहद पानी के साथ लेने से नींद ठीक से आ जाती है। पेट साफ होता है। खाली पेट मधु और नींबू का शरबत भूख लगाता है।

मधु जीवाणुओं का नाश करता है। टाइफाईड और क्षय के रोगियों के लिए भी मधु उत्तम है।

हजारों वर्षों तक भी मधु बिगड़ता नहीं। मधु बच्चों के विकास मे बहुत उपयोगी है। यदि बालक को प्रारंभिक नौ महीने मधु दिया जाये तो उसे छाती के रोग कभी न होंगे। मधु से अँतड़ियों में उपयोगी एसिकोकलिस जीवाणुओं की वृद्धि होती है। मधु दुर्बल और सगर्भा स्त्रियों के लिए श्रेष्ठ पोषणदाता आहार है। मधु दीर्घायुदाता है। रशिया के जीवशास्त्री निकोलाइना सिलिव प्रयोगों के अंत में कहते हैं कि रशिया के 200 शत-आयुषी लोगों का धंधा मधुमक्खी के छत्ते तोड़ना है और मधु ही उनका मुख्य आहार भी है।

दुर्बलता दूर करके शक्ति बढ़ाने के लिए मधु जैसी गुणकारी वस्तु विश्व में अन्य कोई नहीं है। मधु शरीर की मांसपेशियों को शक्ति देता है। अतः अविराम कार्य करने वाली सबसे महत्त्वपूर्ण मांसपेशी हृदय के लिए मधु अत्यंत उपयोगी है। मधु से मंदाग्नि दूर होक भूख लगती है। वीर्य की वृद्धि होती है। आबालवृद्ध सबके लिए मधु हितावह है। बालकों को जन्मते ही दिया जा सके ऐसा एकमात्र भोजन मधु है।

मधु के खनिज तत्त्व रक्तनिहित लाल कणों की वृद्धि में सहायक बनते हैं ,। गर्भवती और प्रसूता माता को भी बालक के हितार्थ शहद का सेवन करना चाहिए। रोगी और कमजोर को मधु शक्ति देता है। शारीरिक परिश्रम करनेवालों को यह शक्ति देता है कारण कि उसे पचाने में शक्ति लगानी नहीं पड़ती  और शक्ति का भंडार मिलता है। मधु के इन गुणों का कारण वह पंचमहाभूत का सार है। अंतिम रस है। मधु उत्तम स्वास्थ्यवर्धक है और साथ-साथ शरीर के रंग को निखारने का, त्वचा को कोमल बनाने का और सुन्दरता बढ़ाने का काम भी करता है। चेहरे और शरीर पर यदि शहद की मालिश की जाये तो सौन्दर्य अक्षय बनता है। अच्छे साबुनों में मधु का उपयोग भी होता है।

मधु, नींबू, बेसन और पानी का मिश्रण चेहरे पर मलकर स्नान करने से चेहरा आकर्षक और सुन्दर बनता है। मधु के सेवन से कंठ मधुर, सुरीला और वाणी मीठी बनती है। दैवी गुणों की वृद्धि होती है। मानव विवेकपूर्ण और चारित्र्यवान बनता है।

मधु शरीर-मन-हृदय का दौर्बल्य, दम, अजीर्ण, कब्ज, कफ, खाँसी, वीर्यदोष, अनिद्रा, थकान, वायुविकार तथा अन्य असंख्य रोगों में रामबाण दवाई है।

मधु हरेक खाद्य पदार्थ के साथ ले सकते हैं। धारोष्ण दूध (एकदम ताजा निकाला हुआ) और फलों के रस में मधु ले सकते हैं। मधु ठंडे पानी में लेना हितावह है। मधु गरम नहीं करना चाहिए। मछली, मधु और दूध साथ में खाने से कफेद कोढ़ होता है। कमलबीज, मूली, मांस के साथ मधु लेना वर्जित है। मधु और बारिस का पानी सममात्रा में नहीं पीना चाहिए। तदुपरांत घी, तेल जैसी चर्बीयुक्त पदार्थों के साथ मधु समान मात्रा में लेना विष के समान होता है। बोतलों में पैक लैबोरेटरी में पास कराया हुआ कृत्रिम मधु जो दुकानों पर बिकता है वह उतना फायदा नहीं करता जितना असली मधु से होता है।

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केलाः ======
सामान्यतः लोगों में ऐसी मान्यता है कि केला जल्दी से नहीं पचता और कब्ज करता है। जो केला पूरी तरह नहीं पका हो उसके खाने का ऐसा परिणाम होता है। जिस केले के छिलके पर काला दाग आ गया हो और गुच्छे को पकड़कर ऊपर उठाते ही उसमें से केला टूटकर नीचे गिर जाये तो उस केले को ठीक के पका हुआ मानिए। ऐसे केले ज्यादा भारी नहीं होते।

नियमित रूप से केले का उपयोग करने से शरीर में मांस और लहू की वृद्धि होती है। शरीर सशक्त बनता है। एशिया में जिम्नास्टिक स्वर्णपदक विजेता चीनी खिलाड़ी लिनिंग का व्यक्तिगत मत है कि उसकी सफलता का रहस्य केला है। किसी भी स्पर्धा में उतरने से पहले वह छः केले खाता है। चीन के अन्य खिलाड़ियों की भी प्रिय खुराक केला है। वजन बढ़ाने के लिए भी केले वरदान स्वरूप हैं। नियमित व्यायाम करने वालों के लिए केले का प्रयोग लाभदायक है। कफ, कब्ज एवं मोटापे के रोगी को केला नहीं खाना चाहिए।

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पृथ्वी पर का अमृतः गाय का दूध====================
गाय का दूध पृथ्वी पर सर्वोत्तम आहार है। उसे मृत्युलोक का अमृत कहा गया है। मनुष्य की शक्ति एवं बल को बढ़ाने वाला गाय का दूध जैसा दूसरा कोई श्रेष्ठ पदार्थ इस त्रिलोकी में नहीं है। पंचामृत बनाने में इसका उपयोग होता है।

गाय का दूध पीला होता है और सोने जैसे गुणों से युक्त होता है।

केवल गाय के दूध में ही विटामिन ए होता है, किसी अन्य पशु के दूध में नहीं।

गाय का दूध, जीर्णज्वर, मानसिक रोगों, मूर्च्छा, भ्रम, संग्रहणी, पांडुरोग, दाह, तृषा, हृदयरोग, शूल, गुल्म, रक्तपित्त, योनिरोग आदि में श्रेष्ठ है।

प्रतिदिन गाय के दूध के सेवन से तमाम प्रकार के रोग एवं वृद्धावस्था नष्ट होती है। उससे शरीर में तत्काल वीर्य उत्पन्न होता है।

एलोपैथी दवाओं, रासायनिक खादों, प्रदूषण आदि के कारण हवा, पानी एवं आहार के द्वारा शरीर में जो विष  को नष्ट करने और चमत्कारिक रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने    की शक्ति गाय के दूध में है।

गाय के दूध से बनी मिठाइयों की अपेक्षा अन्य पशुओं के दूध से बनी मिठाइयाँ जल्दी बिगड़ जाती हैं।

गाय को शतावरी खिलाकर उस गाय के दूध पर मरीज को रखने से क्षय रोग (T.B.)  मिटता है।

गाय के दूध में दैवी तत्त्वों का निवास है। गाय के दूध में अधिक से अधिक तेज तत्व एवं कम से कम पृथ्वी तत्व होने के कारण व्यक्ति प्रतिभासम्पन्न होता है और उसकी ग्रहण शक्ति (Grasping Power) खिलती है। ओज-तेज बढ़ता है। इस दूध में विद्यमान 'सेरीब्रोसाडस' तत्व दिमाग एवं बुद्धि के विकास में सहायक है।

केवल गाय के दूध में ही Stronitan तत्व है जो कि अणुविकिरणों का प्रतिरोधक है।

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