संविधान हत्या दिवस: क्यों मनाया जाता है 25 जून?
🖋 डॉ. राकेश दत्त मिश्र
भारतीय लोकतंत्र का सबसे काला अध्याय – 25 जून 1975। यही वह दिन है जब भारतीय गणराज्य के संविधान की आत्मा को सत्ता की हवस ने कुचल दिया। संविधान की मूल भावना, नागरिक अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और न्याय की अवधारणा पर सरकार के निर्णय ने सीधा प्रहार किया। इसी दिन आपातकाल घोषित हुआ और तब से यह दिन ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में याद किया जाता है।
🏛️ घटनाक्रम की पृष्ठभूमि
- 1975 में इंदिरा गांधी की सत्ता संकट में आ गई थी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उनके निर्वाचन को अवैध घोषित कर दिया। सत्ता से हटने के बजाय उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 352 का दुरुपयोग करते हुए आपातकाल लागू करवा दिया।
🔐 लोकतंत्र पर हमला – संविधान की आत्मा का हनन
- 1️⃣ मौलिक अधिकारों का निलंबन:-नागरिकों के अभिव्यक्ति, विरोध, विचार और आंदोलन करने के अधिकारों को निलंबित कर दिया गया। हज़ारों लोगों को बिना आरोप जेल में डाल दिया गया।
- 2️⃣ प्रेस की आज़ादी पर ताला:-सेंसरशिप ने समाचार पत्रों की रीढ़ तोड़ दी। संपादक डरे, कलम रोकी गई। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने खाली पृष्ठ छाप कर विरोध जताया।
- 3️⃣ न्यायपालिका पर नियंत्रण:-सुप्रीम कोर्ट तक ने मौलिक अधिकारों को स्थगित करने पर सहमति दी (ADM जबलपुर केस)। न्याय की आत्मा को सत्ता के तलवे चाटने पर मजबूर किया गया।
- 4️⃣ विपक्षियों का दमन:-जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी जैसे हजारों नेता जेल में ठूंसे गए। विरोध करना ‘राजद्रोह’ बना दिया गया।
- 🧾 42वां संशोधन – जब संविधान बना गुलाम:- 1976 में लाया गया 42वां संविधान संशोधन 'मिनी संविधान' कहलाया, जिसने संविधान की बुनियादी संरचना पर हमला किया। सरकार की शक्तियाँ बढ़ाकर उसे सर्वसत्ता बना दिया गया।
⚖️ क्यों कहा गया इसे 'संविधान हत्या'?
क्योंकि उस दिन—
- संविधान को निष्क्रिय किया गया,
- नागरिक अधिकारों को कुचला गया,
- लोकतंत्र को बंदी बनाया गया,
- न्यायपालिका और मीडिया को दबा दिया गया।
- यह सब एक व्यक्ति की सत्ता रक्षा के लिए हुआ — यह संविधान की आत्महत्या नहीं, उसकी सुनियोजित हत्या थी।
🧠 आज की पीढ़ी को क्या सीख लेनी चाहिए?
लोकतंत्र केवल वोट से नहीं चलता, सजगता से भी चलता है।
संविधान केवल दस्तावेज नहीं, चेतना है।
तत्कालीन दमन को भूलना, भविष्य की तानाशाही को न्योता देना है।
यह केवल अतीत नहीं, चेतावनी है!
- 25 जून एक इतिहास की तारीख नहीं, लोकतंत्र की चेतावनी है। इस दिन हम याद करते हैं कि किस प्रकार सत्ता की अंधी भूख संविधान को रौंद सकती है। यह दिवस हमें प्रेरित करता है कि हम नागरिक अधिकारों की रक्षा करें, सवाल करें, और लोकतंत्र के प्रहरी बनें।
🖋️ “हमारा संविधान हमारा आत्मसम्मान है – उसकी रक्षा ही राष्ट्र रक्षा है।”
✍️ लेखक परिचय
डॉ. राकेश दत्त मिश्र, राजनीतिक विश्लेषक, समाजसेवी एवं दिव्य रश्मि संपादकीय सलाहकार मंडल के सदस्य हैं। भारतीय संविधान, राजनीति और सामाजिक चेतना पर उनके लेखन ने जनमानस को जागरूक किया है।
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