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दहेज छोड़ संस्कार निभाओ

दहेज छोड़ संस्कार निभाओ

✍️ डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"
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. लोभी बाप सुने ज़रा,
यह दुनिया क्या कहे,
बेटा बेच कोई नाम न पाए,
बस कलंक सदा द्वार रहे।


मूल्यों का जो मान नहीं,
बस पैसों पर विश्वास है,
लोभ तुम्हारी आँखों में,
जैसे जलता इतिहास है।


घर-आँगन में स्नेह नहीं,
बस सौदे की पहचान है,
जहाँ ब्याह नहीं पवित्रता
वहाँ सिर्फ़ अपमान है।


बेटा बेच कर क्या पाओगे?
पाओगे केवल शाप ही,
सुख मिलेगा ना जीवन में,
होगी मन में संताप ही।


बेचना ही है तो पहले अपना,
चरित्र और सम्मान बेच,
पर बेटा तो प्रभु का वरदान है,
दहेज पर क्यों कसता पेंच?


दहेज-लोभ की आग में,
जो जलते हैं वे घर नहीं,
जो ले-दे कर रिश्ता जोड़ें,
उनमें प्रेम का स्वर नहीं।


जग से पहले खुद सुनो
भीतर की इक आवाज़ को,
बेटी-बेटों के भाग्य को मत
बाँधो लोभ के राज को।


मानवता का धर्म यही
रिश्ते दिल से जोड़े जाएँ,
सौदे में जो बिकते रिश्ते
वे संसार में टिक न पाएँ।


बेटा-बेटी भगवान का दान
मत उन्हें बाज़ार बनाओ,
लोभ हटाओ दिल से पहले
तब सच्चे संस्कार निभाओ।
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