अलविदा २०२५
जय प्रकाश कुवंरजो फरता है, वो झरता है।
जो पैदा हुआ, वो मरता है।।
ऐसी ही जग की रीति है।
ऐसे ही सब पर बीती है।।
मैं १ से ३६५ तक आ गया हूँ।
निर्धारित अवधि पार पा गया हूँ।।
मेरी अवधि में कुछ भला हुआ कुछ बुरा हुआ।
जो नियति निर्धारित था, बस वही हुआ।।
जो अच्छा हुआ उसे नमन करो।
जो बुरा हुआ उसे बमन करो।।
अब आज मेरी उल्टी सांस चल रही है।
लगता है आत्मा शरीर से निकल रही है।।
रात १२ बजते ही मेरी सांस थम जाएगी।
मेरी जिंदगी तब अतीत बन जाएगी।।
अब अंतिम अभिवादन स्वीकार करो।
सब हंस कर के हमको विदा करो।।
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