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भारत के प्रथम हृदय-रोग-विशेषज्ञ और ऋषि-साहित्यकार थे डा श्रीनिवास

भारत के प्रथम हृदय-रोग-विशेषज्ञ और ऋषि-साहित्यकार थे डा श्रीनिवास

  • जयंती पर साहित्य सम्मेलन में दी गई काव्यांजलि, पत्रिका 'प्रबुद्ध वाणी' का हुआ लोकार्पण ।

पटना, ३० दिसम्बर। पटना में इंदिरा गाँधी हृदय रोग संस्थान के संस्थापक और भारत के प्रथम हृदय-रोग-विशेषज्ञ थे डा श्रीनिवास। वे एक महान चिकित्सक ही नहीं, एक ऋषि-तुल्य साहित्यकार और संत थे। कला,साहित्य और संगीत के प्रति उनका आग्रह प्रणम्य था। स्त्रियों के प्रति उनकी श्रद्धा अनुकरणीय थी। एक छोटी बच्ची को भी 'माँ' कहकर संबोधित करते थे और पैर छू लेते थे।

यह बातें, मंगलवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित डा श्रीनिवास जयंती एवं कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि डा श्रीनिवास भारत के पहले चिकित्सक थे, जो इंग्लैंड से ईसीजी मशीन लेकर भारत आए थे और चिकित्सा-विज्ञान में हृदय-रोग-चिकित्सा को एक अलग विभाग के रूप में मान्यता दिलायी। उसी मशीन से भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा राजेंद्र प्रसाद और नेपाल के प्रधानमंत्री बी पी कोईराला समेत अनेक प्रभावशाली व्यक्तियों और सामान्य जन की भी चिकित्सा हुई। उन्होंने साहित्य और चिकित्सा साहित्य पर भी अनेक पुस्तकें लिखीं। चिकित्सा में वे सभी पद्धतियों के पक्षधर थे। उनका मानना था की रोगी की चिकित्सा होनी चाहिए, वो चाहे जिस पद्धति से हो। वो चिकित्सा की 'पौली-पैथी' पद्धति के भी जनक माने जाते है ।

डा श्रीनिवास के बड़े पुत्र भैरव उस्मान प्रियदर्शी ने कहा कि पिताजी ने धन कमाने अथवा नौकरी पाने की कामना से नहीं, विशुद्ध सेवा की भावना से चिकित्सा-सेवा को वृत्ति के रूप में चुना था। उन्होंने पीड़ित मानवता को भी बहुत निकट से देखा था और यह भी देखा था कि कुछ बड़े चिकित्सक कितनी निर्दयता से लाचार रोगियों का शोषण करते हैं।

अमेरिका से पधारे डा श्रीनिवास के दूसरे पुत्र डा ताण्डव आइंस्टाइन समदर्शी ने पिता के चिकित्सकीय और साहित्यिक अवदानों की विस्तृत चर्चा करते हुए, उन्हें 'पद्म-विभूषण अलंकरण' से विभूषित करने की मांग की। उनका यह भी आग्रह था कि इन्दिरा गाँधी हृदय रोग संस्थान में उनकी एक प्रतिमा भी लगायी जानी चाहिए।

सम्मेलन अध्यक्ष ने प्रबुद्ध हिन्दू समाज द्वारा प्रकाशित पत्रिका 'प्रबुद्ध वाणी' का लोकार्पण भी किया गया। पत्रिका के प्रधान संपादक और संस्था के अध्यक्ष प्रो जनार्दन सिंह ने कहा कि डा श्रीनिवास सांप्रदायिक-सद्भाव के अन्यतम उदाहरण थे। हिन्दू समाज में व्याप्त कुरुतियों के प्रति चिंतित रहते थे। वे हमारी संस्था के संस्थापकों में थे। सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, डा श्रीनिवास की पुत्री डा वसुंधरा सिन्हा, जमाता डा कवीन्द्र प्रसाद सिन्हा, पौत्री डा सेवंती लिमये, प्रो दीपक कुमार शर्मा, डा मनोज गोवर्धनपुरी तथा रंजन कुमार मिश्र ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन में वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, डा रत्नेश्वर सिंह, प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, श्याम बिहारी प्रभाकर, डा रमाकान्त पाण्डेय, कुमार अनुपम, विभारानी श्रीवास्तव, शमा कौसर 'शमा', डा शालिनी पाण्डेय, ईं अशोक कुमार, डा सुषमा कुमारी, डा आर प्रवेश, राज प्रिया रानी, अरविन्द अकेला आदि कवियों और कवयित्रियों ने काव्य-पाठ से उत्सव को सरस और आनंदप्रद बना दिया।

मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पांडेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन सम्मेलन के प्रबंधमंत्री कृष्ण रंजन सिंह ने किया। डा श्रीनिवास की पुत्रवधु किरण समदर्शी, नीव श्रीनिवास, डा पूनम चौधरी, अरुण सिंह, ब्रज किशोर नारायण सिंह, सिया कुमारी, श्रेयान लिमये, राहूल सिंह परमार, डा राजीव कुमार, राहूल सिंह परमार, डा चन्द्रशेखर आज़ाद आदि उपस्थित थे।

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