संघर्ष से शिखर तक,नारी सदा अपराजिता
कुमार महेंद्रपरम माध्य सृष्टि सृजन,
परिवार समाज अहम अंग ।
सदा उत्सर्गी सोच व्यंजना,
पर आनंद हित उत्साह उमंग ।
संवाहिका संस्कृति परंपरा,
पुनीत पावन धर्म आस्था सरिता ।
संघर्ष से शिखर तक,नारी सदा अपराजिता ।।
मृदुल मधुर अंतर भाव,
नैसर्गिकता अंग प्रत्यंग ।
मिलनसारी विमल व्यवहार,
मुख पुलकित मुस्कान संग ।
विनम्रता सामंजस्यता अद्भुत,
द्वि कुल हित खुशियां अर्पिता ।
संघर्ष से शिखर तक,नारी सदा अपराजिता ।।
अज्ञान वश जनमानस भ्रमित,
दृष्टि पात मात्र सुडौल तन ।
वासना मय आचार विचार,
कुंठित मानसिकता अथाह रमन ।
पुरुष प्रधान समाज अहंकारी,
देख शील सौम्य चरित्र नमिता ।
संघर्ष से शिखर तक,नारी सदा अपराजिता ।।
महिला शक्ति प्रतिभा अनुपम,
हर क्षेत्र अग्र ओजस्वी कदम ।
शिक्षा विज्ञान खेलकूद गृह,
नित शोभित कीर्तिमानी रिदम ।
सद्गुण स्नेहगार दया उद्गम स्थल,
अनंत नमन जीवन_ज्योत्स्ना धारिता।
संघर्ष से शिखर तक,नारी सदा अपराजिता ।।
कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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