पथार सुखावल
जय प्रकाश कुवंरमाई धुप में पथार पसारत बाड़ी।
बबुआ कहस जे,
माई अनाज छिटत बाड़ी।।
जनमल बाड़ ऽ गाँव में,
अनाज ना सुखेला छांव में।।
पढ़ लिख के अइसन काहे भइलऽ।
अबहियों भकचोन्हर रह गइल ऽ।।
धुप में मकई पसारल बा।
चटाई बिछा के ओपर छितारल बा।।
माई हाथ से चलावत बाड़ी।
उलिट पलिट के सुखावत बाड़ी।।
जब पथार खुब सुख जाई।
तब बटोर के भूंजा भूंजाई।।
भूंजा सतुआ अइसहीं बनेला।
माई से सिखऽ घर कइसे चलेला।।
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