ढूँढे आचार्यश्री को
संजय जैनओ आचार्यश्री....
ढूँढे बुंदेलखंड का कण कण।
सिसके शिष्यों का तन मन।
ओ निशदिन तुम्हें पुकारे मन हो।
ओ आचार्यश्री......।।
तेरे से ही धर्म को सिखा
और जाना जैन धर्म को।
आयी ऐसी घड़ी छूटा साथ तेरा
भक्तो को दर्शन हुए दुर्लभ हो।
ओ आचार्यश्री ......।।
कैसे बने बुंदेलखंड में शिष्य तेरे
और कौन अब आगे बनायेगा।
जब जब आयेगा चौमासा
तब भक्तजन भटगें यहाँ वहाँ।
कैसे होगा गुरु शिष्यों का मिलन हो।
ओ आचार्यश्री.......।।
शिष्यों भक्तों ने कैसे छोड़ दिया
अपने विद्यासागर जी को।
वो तो जा बैठे मोक्ष में
शिष्य डूबे आहों में।
तरसे हम सब तेरे दर्शन को, हो।
ओ आचार्यश्री...
ढूँढे बुंदेलखंड का कण कण।
सिसके शिष्यों का तन मन।
ओ निशदिन तुम्हें पुकारे मन, हो।
ओ आचार्यश्री......।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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