जीवन के स्रोत
अरुण दिव्यांश
जिनगी देल त भगवान के ,चले खातिर दू गो राह बा ।
एक राह में निकलत आह ,
दोसर रास्ते वाह वाह बा ।।
जिनगी बाटे आपन आपन ,
आपन आपन राह दुआर ।
कवनों जीवन सज्जन बाटे ,
कवनों जीवन चोर चुहार ।।
करम सब होखेला आपन ,
जन जन ई भामाशाह बा ।
चोरी छिपी चाहे जवन करीं ,
समय त सबके गवाह बा ।।
समय सब होखे कर्ता धर्ता ,
समय सबके बाटे परीक्षक ।
समय पाके सब कुछ होखे ,
समय सबके बा निरीक्षक ।।
कोई रह जात बाटे कुॅंआरे ,
कोई के भईल बियाह बा ।
केहू बनत बिधूर बिधवा ,
त कोई बनल दोआह बा ।।
जीवन बनल प्रतियोगिता ,
जन जन बनत बाटे बीस ।
सबके कमी सब निहारत ,
अपने कमी करो तफ्तीश ।।
पूॅंजी देखे लोग दोसरा के ,
लोग बनत हसबखाह बा ।
आपन धन लोग रखे नुकाके ,
दोसरे के धन पे निगाह बा ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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