ठिठुरती शाम , शब्दों के नाम
दिसंबर साल का विशेष महीनादिसंबर साल का विशेष महीना
कभी बन जाता यह नाग नागिन ,
कभी बनता यह विशेष नगिना ।
कभी जमकर कहर है बरसाता ,
कभी विदा लेता ये बन हसीना ।।
कभी होंठों पर हॅंसी बिखेरता ,
कभी स्वयं का भी उड़ाता हॅंसी ।
कभी स्वयं वह हास्य बन जाता ,
तो कभी बनता स्वयं है उर्वशी ।।
गीले शिकवे और हॅंसी ठिठोली ,
मान सम्मान अपमान बीते वर्ष ।
हर कुछ स्वयं ही ग्रहण करके ,
विदा लेत दिसंबर वर्ष ले सहर्ष ।।
सुख दुःख संग वर्ष सहर्ष उत्कर्ष ,
लेकर विदा लेता माह दिसंबर ।
नववर्ष का पावन विमर्श लेकर ,
अगला वर्ष बरसाता यह अंबर ।।
किसी चौड़ा कर देता यह सीना ,
किसी का जाड़े में छुटे पसीना ।
कहीं सुख चैन दे कहीं है छीना ,
दिसंबर साल का विशेष महीना।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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