"मिट्टी का उत्तराधिकार"
पंकज शर्मातू जो अपने नाम की दीवार खड़ी करता रहा,
वक़्त ने चुपचाप तेरे हस्ताक्षर मिटा दिए।
आईने में जो चेहरा अमर लगता था,
वह साँस के रुकते ही प्रश्न बन गया।
मिट्टी ने तुझे उधार लिया था,
पूरे आदर और धैर्य के साथ।
अब वही अपनी चीज़
बिना शोर, बिना शिकायत, वापस माँगेगी।
तेरी हथेलियों में जिन सपनों की रेखाएँ थीं,
वे भी किसी दिन
उँगलियों की तरह
सीधी होकर निष्प्राण हो जाएँगी।
विडंबना यह नहीं कि तू मिटेगा,
विडंबना यह है
कि जिन कंधों पर तूने भरोसा रखा,
वही अंतिम दूरी तय करेंगे।
वे जो तेरी हँसी के साक्षी थे,
तेरे मौन के भी व्यवस्थापक होंगे।
प्रेम अपने सबसे कठिन रूप में
वहीं प्रकट होता है।
जीवन ने तुझे केंद्र समझकर नहीं,
एक पड़ाव मानकर जिया।
इसलिए अंत में
तू किसी इतिहास में नहीं,
एक संस्कार में बदलेगा।
जब मिट्टी तुझे ढँक लेगी,
तो न कोई प्रश्न शेष रहेगा
न कोई उत्तर।
बस शांति —
जो सभी तर्कों से परे है।
तू ख़ाक था,
और ख़ाक होने का बोध ही
तेरी सबसे बड़ी उपलब्धि है।
क्योंकि जो यह समझ गया,
वह मरने से पहले
थोड़ा मुक्त हो गया।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
✍️ "कमल की कलम से"✍️ (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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