फायदा का रिश्ता
जय प्रकाश कुवंरगुम हो गया रिश्तों में,
अपनापन का पैमाना।
रिश्तों में आज कल ढूँढ रहा है,
फायदा यह जमाना।।
सगा शब्द ठगा गया है,
अजीब युग आ गया है।
फायदे में ही दोस्ती यारी,
हर रिश्ता समा गया है।।
गरीब आदमी आज कल,
परिचय का मुंह ताज है।
अमीर के कंधे पर हाथ रख,
फोटो खिंचवाने में नाज है।।
इस युग में मतलब और फायदा,
कुछ अजीब खेल दिखा रहा है।
हर आदमी इस मायाजाल में,
हर रोज फंसते जा रहा है।।
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