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“आवरणम् (घूँघट)”

“आवरणम् (घूँघट)”

डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश:" 
 दृष्टौ निहितम् एकम् पावनम् तद् आवरणम्,
लज्जां नयति रोहिणी उन्नीयते यद् आवरणम्।
मारुतोऽपि निरुद्धवान् स्वसरगोष्टिम् सर्वाम्,
न बिभेद कथाम् हृदयस्य तद् रक्षितम् आवरणम्।
मम कामनृतुकाले प्राप्तः नूतनवर्णः,
उन्मीलितेऽवलेपने पल्कयोः सुकुमारम् आवरणम्।
ईशपूजासमा भवति तस्याः प्रथमदृष्टिः,
अवनिशु पतति यदा चन्द्रज्योतिः इव आवरणम्।
किं कारणं हृदयस्पन्दनं त्वरितं भवति,
प्रियकरकरोद्गतम् कम्पितं तद् आवरणम्।

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