"मौन का आलोक"
पंकज शर्मामित्रों बोलना प्रायः हमारे संचित अनुभवों का पुनरावर्तन होता है, जहाँ मन अपनी जानी - पहचानी दीवारों से टकराकर लौट आता है। परंतु मौन—वह भीतर का उजास है—जो हमें स्वयं की सीमा का बोध कराता है। जब शब्द थमते हैं, तब अंतःकरण अपनी गहराइयों में उतरकर जीवन के अदृश्य सत्य को टटोलता है।
वहीं सुनना, वास्तव में, आत्मा का वह द्वार खोलना है जहाँ नवीनता अपना पहला स्वर फूँकती है। दूसरों की धड़कनों, प्रकृति की नीरव फुसफुसाहटों एवं समय के अदृश्य उपदेशों को ग्रहण करते हुए मन विस्तृत होता है। अतः जीवन की साधना इसी में है—कम बोलें, अधिक सुनें, एवं चेतना की सतह को नित नवीन बनाते रहें। . "सनातन" (एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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