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दिखने लगा है कोरोना वैक्सीन का दुष्प्रभाव

दिखने लगा है कोरोना वैक्सीन का दुष्प्रभाव

रवि शेखर सिन्हा
हर हर महादेव!!
ई. सन 2020-21 में पूरी दुनिया में कोरोना महामारी ने आतंक मचा रखा था। यहां तक कि 2022 में भी इस महामारी का बुरा प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ता रहा। ऐसे समय में पूरे विश्व की दवा कंपनियों ने या यूं कहें कि दवा माफियाओं ने आपदा में अवसर ढूंढने का प्रयास किया और कोरोना वैक्सीन का निर्माण किया गया। उस समय प्रत्येक व्यक्ति अपनी जान की सुरक्षा चाहता था। अतः ताबड़तोड़ सभी ने कोरोना वैक्सीन लगवा लिए। समय की मांग थी। जीवन सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक था। किंतु इस वैक्सीन के पीछे की साजिश को कोई भी समझ नहीं पाया। फिर कुछ दिनों के अंतराल पर वैक्सीन का second dose अर्थात दूसरी खुराक लगाई गई। वैक्सीन की दूसरी खुराक लगने के बाद धीरे-धीरे लोगों को समझ में आने लगा कि यह वैक्सीन लाभकारी नहीं है। बल्कि इससे शरीर में अचानक कुछ अजीब से बदलाव आने लगे हैं। फिर लोगों में दहशत फैलाया गया कि कोरोना से बचने के लिए कोरोना का बूस्टर डोज अर्थात तीसरी खुराक भी लेनी पड़ेगी।
किंतु बहुत से बुद्धिजीवियों को यह पता चल गया था कि कहीं कुछ तो गड़बड़ है। कुछ लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दायर कर दिया की सरकार कोरोना वैक्सीन के इस तीसरे डोज को अनिवार्य नहीं कर सकती। सुप्रीम कोर्ट का भी यही फैसला आया कि सरकार किसी पर भी तीसरी डोज के लिए दबाव नहीं बनाएगी। व्यक्ति अपनी स्वेच्छा से इस वैक्सीन को ले सकता है अथवा लेने से इनकार कर सकता है।
कहते हैं अगर कहीं से धुआं निकल रहा है तो आग कहीं न कहीं जरूर है। वैसे ही कोरोना वैक्सीन की गड़बड़ियां तब दिखानी शुरू हुई जब कोरोना वैक्सीन के दो डोज लगाने के बाद भी लोगों को कोरोना हुआ। मैं भी इस स्थिति से गुजर चुका हूं। कोरोना का पहला वैक्सीन लगने के बाद मुझे कोरोना हुआ। कोरोना वैक्सीन का दूसरा डोज लेने के बाद मुझे दोबारा कोरोना हुआ और कोरोना का तीसरा डोज नहीं लेने के बाद भी मुझे तीसरी बार कोरोना हुआ। अर्थात कोरोना वैक्सीन का डोज लेने अथवा न लेने से कोई खास फर्क नहीं पड़ा।
तीसरी बार कोरोना होने का कारण इम्यून सिस्टम का कमजोर हो जाना था। क्योंकि कोरोना के दो वैक्सीन लेने के बाद शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो गई। उसके बाद शरीर के अंदर बड़ी आसानी से कोरोना का वायरस प्रवेश करके बीमार कर दिया। मेरे साथ-साथ लाखों करोड़ों लोगों के साथ ऐसा ही हुआ। तब लोगों को समझ में आया कि कोरोना वैक्सीन सही नहीं था। जब इस पर रिसर्च हुआ, बवाल मचा। सही तथ्य सामने आया। आज 5 बरस के बाद लोगों को बताया जा रहा है कि कोरोना वैक्सीन के दो डोज लेने के बाद इंसान का जीवन खतरे में है।जिन्होंने तीसरा डोज लिया है उनका तो भगवान ही जाने। कोरोना वैक्सीन के जानलेवा होने के बारे में डॉक्टर विश्वरूप राय चौधरी ने कोरोना वैक्सीन के मार्केट में आने के पहले ही मीडिया में, सरकार को आगाह कर दिया था कि यह वैक्सीन किसी भी व्यक्ति को नहीं लगाया जाए। तब उस समय सरकार ने और मीडिया ने उनकी आवाज को चुप करा दिया। लोगों तक सही तथ्यों को पहुंचने नहीं दिया और अब दुनिया भर के वैज्ञानिक यह बताने में जुटे हैं की कोरोना वैक्सीन के डोज लगने के बाद सचमुच शरीर के अंदर कुछ अजीब से बदलाव हो गए हैं। व्यक्ति का शरीर कमजोर हो गया है और शरीर के अंदर नई-नई बीमारियां आने लगी हैं। समय और उम्र से पहले लोगों में वृद्धावस्था, बुढ़ापा के लक्षण दिखने लगे हैं। हालांकि यह विषय मेरा नहीं है। मैंने आज तक कभी इस विषय पर चर्चा नहीं की। क्योंकि मेरा क्षेत्र ज्योतिष विज्ञान का है। मैं ग्रह नक्षत्र की बात करता हूं। किंतु आज जनहित में, देश हित में, समाज हित में मैंने इस पर चर्चा करना जरूरी समझा।
अपने विषय से अलग हटकर इस विषय पर बात कर रहा हूं जो बेहद आवश्यक है। मनुष्य होने के नाते मानवता के प्रति मेरी भी कुछ नैतिक जिम्मेदारी बनती है। जिसका में निर्वहन कर रहा हूं।
2020-21 के कोरोना वैक्सीन के दो डोज लगाने के बाद जिन युवाओं की शादी हुई है, उनमें सबसे बड़ी समस्या जो आ रही है, वह है संतान उत्पत्ति की समस्या। युवक युवतियां प्राकृतिक तरीके से संतान उत्पन्न नहीं कर पा रहे हैं। युवतियों में बांझपन की, पीसीओडी (पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज) एक हार्मोनल असंतुलन से जुड़ी समस्या है, जिसमें अंडाशय में कई छोटे-छोटे सिस्ट (cysts) बन जाते हैं की प्रॉब्लम आ रही है। युवकों में नपुंसकता की स्थिति बन गई है। जो लोग पहले से विवाहित हैं, युवावस्था में हैं, उन्हें Erectile dysfunction(स्तंभन दोष) का सामना करना पड़ रहा है। उनका वैवाहिक जीवन खराब होता जा रहा है। पति-पत्नी में तनाव और विवाद होने लगे हैं। लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है?
अचानक से लोग बीमार होने लगे हैं। बड़ी ही तेजी से शुगर, बीपी, कोलेस्ट्रॉल, हार्मोंस की गड़बड़ी,थायराइड और हार्ट की बीमारियां बढ़ने लगी हैं। Sudden Cardiac Arrest बड़ी तेजी से फैलता जा रहा है। मनुष्य का शरीर इतना कमजोर हो गया है कि थोड़े से परिश्रम से ही व्यक्ति की मृत्यु हो जा रही है। पिछले दिनों बड़ी अजीब अजीब घटनाएं घटी हैं।
वैवाहिक कार्यक्रमों में नाचते समय, खुशियां मनाते समय, विवाह करते समय, दौड़ते समय, जिम में व्यायाम करते समय, योग प्राणायाम करते समय, दफ्तर में काम करते समय थोड़ा सा भी शरीर पर दबाव पड़ रहा है, थोड़ा सा भी शरीर पर प्रेशर आ रहा है तो व्यक्ति की सेकंड भर में मृत्यु हो जा रही है।
यह अत्यंत चिंता का विषय है। इस पर हम सबको एकजुट होकर विचार करना चाहिए, चर्चा करना चाहिए, इसका समाधान ढूंढना चाहिए।
आज बड़ी तेजी से कैंसर की बीमारी फैलने लगी है। पिछले दो-तीन वर्षों में कैंसर के काफी मामले सामने आए हैं।
अब तो संदेह उत्पन्न होने लगा है की कोरोना का वैक्सीन लोगों को बचाने के लिए इस्तेमाल किया गया या लोगों को मीठा जहर देकर मारने की कोशिश की गई। जिससे दुनिया की आबादी कम हो सके।
आप यदि ध्यान से देखें तो पिछले दो-तीन वर्षों में बड़े शहर तो छोड़ दीजिए, छोटे-छोटे शहरों में, छोटे-छोटे कस्बों में भी IVF CENTRE (आईवीएफ सेंटर) खुल गए हैं।
क्या दवा कंपनियों को पता था कि इस कोरोना वैक्सीन का इतना दुष्प्रभाव हो जाएगा की नव विवाहित जोड़े,नव दंपतियां जिन्होंने कोरोना का वैक्सीन लिया हुआ है, प्राकृतिक रूप से संतान उत्पन्न नहीं कर पाएंगे। उन्हें आईवीएफ की जरूरत पड़ेगी।
कोरोना वैक्सीन का सीधा प्रभाव रक्त के अंदर घुल जाने से पड़ रहा है। अर्थात इस कोरोना वैक्सीन ने मानव शरीर के रक्त को दूषित कर दिया है। जिसके कारण तरह-तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है। विशेष रूप से शरीर में रक्त की अशुद्धि के कारण दो जटिल समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।
एक रक्त के थक्के जम जाना। जिसके कारण हार्ट अटैक आने लगे हैं। दूसरा रक्त का पतला हो जाना। जिसके कारण कैंसर की बीमारी होने लगी है।
डॉ विश्वरूप चौधरी के अनुसार मनुष्यों के शरीर में खास तरह की स्थिति बन रही है। जिसे कहते हैं थ्रोम्बोसिस थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम(टी टी एस)
Thrombosis Thrombocytopenia Syndrome.
जिसके कारण रक्त वाहिकाओं में रक्त के थक्के बनने का अनुभव होता है।
खून के थक्के और कम प्लेटलेट्स का संयोजन खतरनाक है। क्योंकि थक्के मस्तिष्क या हृदय जैसे महत्वपूर्ण अंगों में रक्त की आपूर्ति को अवरुद्ध कर सकते हैं, जिससे स्ट्रोक या दिल का दौरा पड़ सकता है।
खून के दूषित होने के कारण शरीर के अंदर अन्य समस्याएं उत्पन्न होने लगी हैं। लोगों के सिर के बाल झड़ने लगे हैं। गंजापन बढ़ने लगा है। समय से पहले बाल और दाढ़ी सफेद होने लगे हैं। आंखों की रोशनी कमजोर होने लगी है। शरीर में कैल्शियम की मात्रा कम होने लगी है। हड्डियां कमजोर होने लगी हैं। मांसपेशियां कमजोर होने लगी हैं। पाचन क्रिया कमजोर होने लगी है। पेट की अनेकों बीमारियां उत्पन्न होने लगी हैं। व्यक्ति डॉक्टर के पास जा रहा है। इलाज करवा रहा है। दवाइयां खा रहा है। एक के बाद एक दूसरी बीमारी होती जा रही है। अब यह बात स्पष्ट हो गया है कि यह सब कोरोना वैक्सीन का साइड इफेक्ट है।
जो होना था हो चुका। सांप निकल गया अब लकीर पीटने से क्या फायदा। अब तो इन समस्याओं से बचने का समाधान ढूंढना ही बुद्धिमानी है। इन समस्याओं से कैसे छुटकारा पाया जाए यह सोचना अत्यंत आवश्यक है।
यदि शरीर के अंदर रक्त को शुद्ध कर दिया जाए तब उम्मीद कर सकते हैं की कोरोना के वैक्सीन के दुष्प्रभाव से हम बच गए। विज्ञान के मुताबिक प्रत्येक 4 महीने के बाद मनुष्य के शरीर में नया खून बनता है। कुछ ऐसे प्रयोग हैं जिन्हें लगातार 4 महीने तक किया जाए तो उम्मीद कर सकते हैं की शरीर के अंदर कोरोना वैक्सीन के दुष्प्रभाव से खून के अंदर जो गड़बड़ियां पैदा हो गई थीं, वह सब चार महीने में समाप्त हो जाएंगी।पांचवे महीने से जो नया खून बनेगा वह शुद्ध हो जाएगा। जिससे इस तरह की समस्याओं से स्वयं को बचाया जा सकता है। अर्थात खून के थक्के जमने और खून के पतला होने को रोका जा सकता है।
हरी पत्तियों के रस को ग्रीन ब्लड कहा जाता है। अर्थात खून की गंदगी को साफ करने के लिए हरी पत्तियों का बड़ा योगदान है।
हरी पत्तियों में सबसे बड़ा नाम रक्त की शुद्धता के लिए नीम की पत्तियों का आता है। नीम की पत्तियां खून को शुद्ध करने के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती हैं। आज से 40 - 50 वर्ष पूर्व आम आदमी प्रतिदिन नीम के पत्ते का सेवन जरूर करता था। नीम के लकड़ी से दातुन किया करता था। उस समय दातों की सफाई के लिए बहुत कम लोग टूथब्रश या टूथपेस्ट का इस्तेमाल करते थे। ज्यादातर लोग नीम के दातुन अथवा बबूल के दातुन का प्रयोग करते थे। किंतु जैसे-जैसे हम मॉडर्न होते चले गए, धनवान होते चले गए, रहन-सहन का तौर तरीका बदल गया। दातुन की जगह टूथब्रश ने ले लिया। जिसके कारण आजकल लोगों के दांत भी कमजोर होने लगे हैं और दांतों में भी तरह-तरह की बीमारियां होने लगी हैं। जिसके कारण डेंटिस्ट की चांदी ही चांदी हो गई है। दातों के डॉक्टरों की अच्छी खासी कमाई हो गई है। दांतों के अस्पताल गली-गली में खुल गए हैं। क्योंकि डॉक्टरों को पता है कि व्यक्ति टूथब्रुश टूथपेस्ट का इस्तेमाल करके अपने दांतों को बर्बाद कर रहा है। उसे डेंटिस्ट की जरूरत पड़ेगी।
मुझे स्मरण होता है बचपन में जब शरीर में कहीं भी खुजली होती थी तो नीम की पत्तियों से बना हुआ साफी नाम की एक सिरप आई थी, हमें वह पिला दिया जाता था और शरीर के अंदर खुजली बंद हो जाती थी। कहते थे कि खून की सफाई हो गई। खून शुद्ध हो गया। आज लोगों को चर्म रोग की भी अनेकों शिकायतें होने लगी हैं। तरह-तरह के चर्म रोग होने लगे हैं और लोग भागते हैं चर्म रोग का इलाज कराने के लिए चर्म रोग विशेषज्ञ के पास। मोटी रकम खर्च करके, अंग्रेजी दवाइयां खा खा कर अपनी किडनी और लीवर को खराब कर रहे हैं।
अब जागरुक होने का समय आ गया है। हमें फिर से अपनी इस पुरानी संस्कृति को अपनाना पड़ेगा, जिसे हम पीछे छोड़ आए हैं। हमें फिर से नीम का प्रयोग करना पड़ेगा।
डॉक्टर विश्वरूप राय चौधरी का कहना है यदि कोरोना के वैक्सीन के साइड इफेक्ट से बचना चाहते हैं तो प्रत्येक 10 किलो वजन के ऊपर एक नीम का पत्ता इस्तेमाल करना चाहिए। नीम के पत्ते को गोल्डन लीफ (Golden leaf) कहा जाता है।
उदाहरण के तौर पर यदि किसी का वजन 70 किलो है तो 7 नीम के पत्ते, यदि किसी का वजन 80 किलो है तो 8 नीम के पत्ते सुबह खाली पेट 4 महीने तक लगातार सेवन करना होगा।
अगर 70 किलो वजन है तो 7 नीम के पत्ते सुबह खाली पेट चबा चबाकर खाकर पानी के साथ निगल जाएं। इन्हीं चार महीनों तक लगातार आंवले का सेवन करें। आंवले की चटनी, आंवले का जूस, आंवले की मीठी कैंडी, किसी भी तरह से कम से कम 2 से 3 आंवला प्रतिदिन खाना चाहिए। कहते हैं आंवला कायाकल्प कर देता है। अर्थात व्यक्ति को फिर से जवान बना देता है। इसके अलावा यदि आप चाहें तो च्यवनप्राश का भी सेवन कर सकते हैं। अर्थात नीम के पत्ते, आंवला और च्यवनप्राश लगातार चार महीने तक नियम से खा लिया जाए तो उसके बाद पांचवें महीने में जो खून बनेगा वह शुद्ध खून बनेगा। कोरोना वैक्सीन के द्वारा जो दुष्प्रभाव खून के अंदर समा गया है, वह सब बाहर निकल जाएगा। बॉडी उसे डिटॉक्सिफाई कर देगी।
साथ ही प्रतिदिन थोड़ी देर व्यायाम करें। विशेष रूप से अनुलोम विलोम, रेचक कुंभक पूरक प्राणायाम, कपालभाति प्राणायाम, सूर्य नमस्कार, भुजंगासन इत्यादि अपने प्रतिदिन के रूटीन में शामिल करें।

इसके अलावा पेट की अंतड़ियों की सफाई भी यदि कर दी जाए तो सर्वोत्तम होगा। इसके लिए शंख प्रक्षालन का प्रयोग किया जाता है। यह ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें गुनगुने पानी में सेंधा नमक और नींबू का रस मिलाकर पीया जाता है और कुछ विशेष व्यायाम किया जाता है। जिससे 6 से 8 बार में मलत्याग के माध्यम से अंतड़ियों के अंदर बरसों पुरानी गंदगी और जमी हुई मल बाहर निकल जाती है।
फिर एक समय ऐसा आता है 6 से 8 बार मल त्याग करने के बाद जैसे ही वह गुनगुना पानी, सेंधा नमक और नींबू के रस को पीते हैं तो जैसा पानी हम पीते हैं वैसा ही मलद्वार से एकदम साफ पानी निकलने लगता है। तब पानी पीना बंद कर देना चाहिए और थोड़ी देर विश्राम करने के बाद गाय के घी में तैरती हुई मूंग की दाल और चावल की खिचड़ी खाना चाहिए। ऐसा करने से पेट की अंतड़ियों की पूरी तरह से सफाई हो जाती है। एक तरफ रक्त की सफाई, खून की शुद्धि। दूसरी तरफ अंतड़ियों की, पेट की शुद्धि। ऐसा करने से व्यक्ति पूर्ण रूपेण स्वस्थ हो जाता है और अनेकों बीमारियों से उसे छुटकारा मिल जाता है।
धन्यवाद!!
लेखक:रवि शेखर सिन्हा उर्फ आचार्य मनमोहन। ज्योतिष मार्तंड एवं जन्म कुंडली विशेषज्ञ।

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