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ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं

ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं

 डॉ. राकेश दत्त मिश्र

ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं,
ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं।
है अपना ये त्योहार नहीं,
है अपनी तो ये रीत नहीं,
है अपना ये व्यवहार नहीं।

धरा ठिठुरती है शर्दी से,
आकाश में कोहरा गहरा है।
बाग-बजारों की सरहद पर,
सर्द हवा का पहरा है।

सूना है प्रकृति का आंगन,
कुछ रंग नहीं, ऊँमंग नहीं।
हर कोई है घर में दुबका,
नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं।

चंद मास अभी इंतजार करो,
निज मन में तनिक विचार करो।
नए साल का नया कुछ हो तो सही,
क्यों नक़ल में सारी अक्ल बह गई।

उल्लास मंद है जन मन का,
आई है अभी बहार नहीं।
ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं,
है अपना ये त्योहार—

ये धुंध-कुहासा छटने दो,
रातों का राज्य सिमटने दो।
प्रकृति का रूप निखरने दो,
फाल्गुन का रंग बहारने दो।

प्रकृति दुल्हन का रूप धारण करेगी,
जब स्नेह-सुधा बरसाएगी।
शस्य-श्यामला धरती माता
घर-घर खुशहाली लाएगी।

तब चैत्र-शुक्ल प्रथम तिथि
नव वर्ष मनाया जाएगा।
आर्यव्रत की पुण्यभूमि पर
जयगान सुनाया जाएगा।

युक्ति-प्रमाण से स्वयं-सिद्ध,
नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध।
आर्यों की कृति सदा-सदा,
नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा।

अनमोल विरासत के धनिको को
चाहिए कोई उधार नहीं।
ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं,
है अपना ये त्योहार नहीं।

जब तक गाँव की गलियों में रोशनी न हो,
जब तक खेतों में हरियाली न खिली हो,
जब तक हर घर में बच्चा मुस्कुराए,
तब तक यह नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं।

जब तक श्रमिक के हाथ में अधिकार न हो,
जब तक किसान की मेहनत सम्मानित न हो,
जब तक बूढ़ा पिता अपने बच्चों को देख
शांति से सो न पाए,
तब तक उत्सव अधूरा है,
तब तक नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं।

जब तक नगर के बच्चे शिक्षित न हों,
जब तक शहर की गलियाँ अंधकारमय हों,
जब तक बुजुर्गों की सेवा समाज न करे,
तब तक कोई उत्सव पूर्ण नहीं है,
तब तक नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं।

सूरज की पहली किरण जब धरती को छुएगी,
बहारें फूलों से सजेंगी,
नदियाँ गाएँगी, पक्षी नाचेंगे,
तब जीवन का उत्सव वास्तविक होगा।

फाल्गुन की धरा जब हरी होगी,
वसंत की ठंडी हवा में खुशियाँ भर जाएँगी,
तब नव वर्ष का स्वागत सही अर्थ में होगा,
तब हम कह पाएँगे—
“ये नव वर्ष हमें स्वीकार है,
ये हमारा अपना त्योहार है।”

आर्यभूमि की पावन धरती पर,
जहाँ सत्य और धर्म का शासन है,
जहाँ न्याय और भक्ति का प्रकाश फैला है,
वहाँ नव वर्ष का पर्व मनाना केवल उत्सव नहीं,
एक संस्कार, एक जागरण,
एक चेतना का संदेश है।

संस्कृति और परंपरा की छांव में,
हमारे पूर्वजों ने सिखाया—
सभी के लिए सुख, सभी के लिए ज्ञान,
सभी के लिए भक्ति और सम्मान।
तब नव वर्ष का महत्व असली है,
तब हम उसे स्वीकार कर सकते हैं।

तब नव वर्ष हमें स्वीकार होगा,
जब हर घर में रोशनी होगी,
जब हर दिल में उम्मीद होगी,
जब हर व्यक्ति अपने कर्तव्य और संस्कार निभाएगा।

अब हम कहेंगे—
“नव वर्ष हमारे साथ है,
हमारा अपना त्योहार है,
हमारा अपना व्यवहार है,
हमारा अपना उत्सव है।” – डॉ. राकेश दत्त मिश्र
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