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यहूदी आस्था, इतिहास और प्रकाश का आठ दिन का पर्व है - “हनुक्काह”

यहूदी आस्था, इतिहास और प्रकाश का आठ दिन का पर्व है - “हनुक्काह”

दिव्य रश्मि के उपसम्पादक जितेन्द्र कुमार सिन्हा की कलम से |

दुनिया के प्रमुख धार्मिक उत्सवों में “हनुक्काह” का विशेष स्थान है। यह पर्व यहूदी समुदाय द्वारा पूरे उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। “हनुक्काह” को “उत्सव ऑफ लाइट्स” यानि “प्रकाश का पर्व” भी कहा जाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह स्वतंत्रता, सांस्कृतिक पहचान और आस्था की विजय का भी प्रतीक है। हर वर्ष “हनुक्काह” के आठ दिन यहूदियों के जीवन में आध्यात्मिक ऊर्जा, पारिवारिक आनंद और सामुदायिक एकता का संदेश लेकर आता है।


‘हनुक्काह’ शब्द हिब्रू भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है, “पुनः समर्पण” या “फिर से पवित्र करना।” यह नाम उस ऐतिहासिक घटना से जुड़ा है, जब यरुशलम के पवित्र मंदिर को अपवित्र किए जाने के बाद फिर से शुद्ध और समर्पित किया गया था। यह उत्सव यहूदियों की उस विजय की याद दिलाता है, जब उन्होंने धार्मिक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया और अपने मंदिर को पुनः प्रतिष्ठित किया।


“हनुक्काह” की जड़ें लगभग 2000 वर्ष पुरानी हैं। यह पर्व दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में घटित एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना से जुड़ा है। उस समय यहूदिया पर सेल्यूसिड साम्राज्य का शासन था, जिसके राजा एंटिओकस चतुर्थ ने यहूदियों की धार्मिक प्रथाओं पर प्रतिबंध लगा दिया था। एंटिओकस चतुर्थ ने यहूदी धर्मग्रंथों के अध्ययन, सब्बाथ पालन और मंदिर में पूजा पर रोक लगा दी थी। यरुशलम के पवित्र मंदिर को अपवित्र किया गया और वहां ग्रीक देवताओं की मूर्तियां स्थापित कर दी गईं। यह यहूदी समाज के लिए असहनीय था।


इस दमन के विरुद्ध यहूदी योद्धा समूह ‘मकाबी’ खड़ा हुआ। यहूदा मकाबी के नेतृत्व में यहूदियों ने विद्रोह किया और अंततः मंदिर को मुक्त कराया। यह संघर्ष केवल राजनीतिक नहीं था, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक अस्तित्व की लड़ाई भी थी।


“हनुक्काह” की सबसे प्रसिद्ध कथा तेल के चमत्कार से जुड़ी है। जब मंदिर को पुनः पवित्र किया गया, तब वहां केवल एक दिन के लिए पर्याप्त शुद्ध तेल उपलब्ध था, जो मेनोराह (पवित्र दीपदान) को जलाने के लिए उपयोग होता था। किंवदंती के अनुसार, वही तेल आठ दिनों तक लगातार जलता रहा, जब तक नया शुद्ध तेल तैयार नहीं हो गया। यही चमत्कार “हनुक्काह” का केंद्रीय प्रतीक है और इसी कारण यह पर्व आठ दिनों तक मनाया जाता है।


“हनुक्काह” के दौरान जिस दीपदान का उपयोग होता है, उसे आमतौर पर ‘हनुक्कियाह’ कहा जाता है, जो नौ शाखाओं वाला होता है। हनुक्कियाह की नौवीं मोमबत्ती को ‘शमाश’ कहा जाता है। इसी से बाकी आठ मोमबत्तियां जलाई जाती हैं। हर दिन एक नई मोमबत्ती जलाई जाती है और आठवें दिन सभी मोमबत्तियां प्रज्वलित होती हैं। यह प्रकाश केवल भौतिक उजाले का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह अज्ञान पर ज्ञान, अन्याय पर न्याय और दमन पर आस्था की विजय को दर्शाता है।


हर शाम सूर्यास्त के बाद हनुक्कियाह में मोमबत्तियां जलाई जाती हैं। इसके साथ विशेष प्रार्थनाएं और भजन गाए जाते हैं। “हनुक्काह” का उत्सव परिवार और समुदाय के साथ मिलकर मनाया जाता है। लोग एक-दूसरे के घर जाते हैं, बच्चों को उपहार दिए जाते हैं और साथ मिलकर भोजन किया जाता है। ड्रेडल एक चार-तरफा घूमने वाला खिलौना है, जिस पर हिब्रू अक्षर अंकित होता है। इसे घुमाने का खेल बच्चों और बड़ों में समान रूप से लोकप्रिय है। इस खेल में चॉकलेट, सिक्के और सूखे मेवे जीते जाते हैं।


“हनुक्काह” में तेल में तले गए व्यंजनों का विशेष महत्व है, क्योंकि यह तेल के चमत्कार की याद दिलाता है। आलू से बने पैनकेक, जिन्हें ‘लैटकेस’ कहा जाता है, सबसे लोकप्रिय व्यंजन हैं।सूफगनियोट जेली से भरे मीठे डोनट्स होते हैं, जो खासतौर पर इजराइल में बहुत पसंद किए जाते हैं।


इजराइल में हनुक्काह का दृश्य अत्यंत मनमोहक होता है। घरों, सड़कों और सार्वजनिक स्थलों पर मोमबत्तियों की रोशनी से पूरा वातावरण जगमगा उठता है। यरुशलम की पुरानी गलियों में हनुक्कियाह की कतारें दिखाई देती हैं, जो आस्था और परंपरा का अद्भुत संगम प्रस्तुत करती हैं।


आज “हनुक्काह” केवल धार्मिक पर्व नहीं रह गया है, बल्कि यह यहूदी पहचान और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक बन गया है। अमेरिका, यूरोप और एशिया के विभिन्न देशों में यहूदियों द्वारा इसे बड़े उत्साह से मनाया जाता है। कई देशों में “हनुक्काह” के दौरान सार्वजनिक स्थलों पर बड़े-बड़े मेनोराह लगाए जाते हैं। मीडिया, कला और साहित्य में भी इस पर्व का उल्लेख देखने को मिलता है। “हनुक्काह” बच्चों के लिए विशेष रूप से आनंददायक होता है। उपहार, खेल, मिठाइयां और रोशनी बच्चों के मन में इस पर्व को लेकर उत्साह भर देता है। इसके साथ ही उन्हें अपने इतिहास और आस्था से जोड़ने का भी यह एक माध्यम है।


“हनुक्काह” यह सिखाता है कि चाहे परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों, आस्था और साहस के बल पर अंधकार को दूर किया जा सकता है। यह पर्व याद दिलाता है कि छोटी-सी रोशनी भी बड़े अंधकार को मिटा सकता है। जिस तरह दीपावली भारत में प्रकाश और अच्छाई की विजय का पर्व है, उसी तरह “हनुक्काह” यहूदियों के लिए समान अर्थ रखता है। दोनों पर्व प्रकाश, आशा और सकारात्मकता का संदेश देता है, जो मानवता को एक सूत्र में बांधता है।


“हनुक्काह” केवल आठ दिनों तक मनाया जाने वाला पर्व नहीं है, बल्कि यह यहूदी इतिहास, संस्कृति और आस्था का जीवंत प्रतीक है। यह स्वतंत्रता, साहस और विश्वास के महत्व को समझाता है। बदलते समय में भी “हनुक्काह” की रोशनी यहूदियों के जीवन को प्रकाशित करती रहती है और पूरी दुनिया को यह संदेश देती है कि अंधकार चाहे कितना भी गहरा हो, प्रकाश अंततः विजयी होता है। -------------
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