अंतर्मन की कामना
✍️ डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश". अंतर्मन में श्याम बसें,
धड़कन में राधा रानी हो !
निज साँसों की हर सरगम में,
मुरली की मधुर कहानी हो !!
चित्त-वृत्ति जब डोल उठे,
नाम-स्मरण का दीप जले !
माया का तम छँट जाए,
हरि-कृपा का सूरज खिले !!
काम–क्रोध का वास न हो,
लोभ–मोह सब गल जाए !
अहंकार की गांठ खुले,
दीनता ही गहना बन जाए !!
दुख-सुख दोनों सम हो जाएँ,
हर्ष-विषाद समान दिखें !
हर अवस्था प्रभु-प्रसाद हो,
नेत्रों में केवल नंदलाल दिखें !!
प्रभु चरणों की रज मिल जाए,
जीवन का हर भार हरे !
मैं–तू का भेद मिट जाए,
साँस-साँस बस श्याम भरे !!
रज कण में भी ब्रज झलके,
पथ-पथ पर गोविंद मिले !
मन–तन–धन सब अर्पित हों,
हर कण में आनंद खिले !!
जब अंतिम श्वास पुकार उठे,
“राधे–श्याम” ही ध्वनि आए !
"रवि" की बस यही कामना
मन वृन्दावन बन जाए !!
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