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पंचायती राज: जमीनी स्तर पर समावेशी विकास का आधार स्तंभ

पंचायती राज: जमीनी स्तर पर समावेशी विकास का आधार स्तंभ

सत्येन्द्र कुमार पाठक
भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में, जहाँ की आत्मा गाँवों में बसती है, लोकतंत्र की सफलता केवल दिल्ली या राज्यों की राजधानियों तक सीमित नहीं रह सकती। महात्मा गांधी ने 'ग्राम स्वराज' का सपना देखा था, जिसका मूल विचार यह था कि हर गाँव अपनी नियति का स्वयं निर्माता बने। इसी सपने को हकीकत में बदलने के लिए 73वें संविधान संशोधन (1992) के माध्यम से पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा दिया गया। यह केवल एक प्रशासनिक सुधार नहीं था, बल्कि सत्ता के विकेंद्रीकरण की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम था, जिसने "सबकी योजना, सबका विकास" के मंत्र को धरातल पर उतारा। पंचायती राज का ऐतिहासिक विकास और संवैधानिक ढांचा
भारत में प्राचीन काल से ही 'पंचायतन' की परंपरा रही है, लेकिन आधुनिक स्वरूप की नींव बलवंत राय मेहता समिति (1957) की सिफारिशों से पड़ी। 24 अप्रैल 1993 को लागू हुए 73वें संविधान संशोधन ने पंचायतों को राज्य का एक वैकल्पिक अंग न मानकर 'स्वशासन की संस्था' के रूप में स्थापित कियग्राम पंचायत (ग्राम स्तर): यह प्रत्यक्ष लोकतंत्र की सबसे छोटी और प्रभावी इकाई है। यहाँ ग्राम सभा के माध्यम से जनता सीधे निर्णय प्रक्रिया में भाग लेती है।क्षेत्र पंचायत/पंचायत समिति (ब्लॉक स्तर): यह ग्राम पंचायत और जिला पंचायत के बीच एक सेतु का कार्य करती है, जो विकास कार्यों के समन्वय के लिए उत्तरदायी है।जिला पंचायत (जिला स्तर): यह जिले की विकास योजनाओं का खाका तैयार करती है और सरकारी निधियों के वितरण की निगरानी करती है।
पंचायती राज व्यवस्था ने शासन को 'जनता के दरवाजे' तक पहुँचा दिया है। इसके सशक्तिकरण के मुख्य आयाम आरक्षण के प्रावधानों (विशेषकर महिलाओं के लिए 33% से 50% तक) ने ग्रामीण भारत के सामाजिक ताने-बाने को बदल दिया है। आज लाखों महिलाएँ, अनुसूचित जाति और जनजाति के प्रतिनिधि नीति-निर्माण में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं । पहले योजनाएँ ऊपर से नीचे (Top-down) थोपी जाती थीं, लेकिन अब ग्राम सभाओं के माध्यम से नीचे से ऊपर (Bottom-up) दृष्टिकोण अपनाया जाता है। सामाजिक न्याय व्यवस्था हाशिए पर पड़े लोगों को अपनी आवाज उठाने और अपने अधिकारों की मांग करने के लिए एक मंच प्रदान करती है।
जमीनी स्तर पर विकास के मुख्य क्षेत्र में पंचायती राज व्यवस्था ने ग्रामीण जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए बहुआयामी कार्य किए हैं: पंचायतों के पास अब अपने क्षेत्रों में बुनियादी संरचना विकसित करने की शक्ति है। इसमें शामिल हैं: सड़कें और संपर्क मार्ग: गाँवों को मुख्य मार्गों से जोड़ना। स्वच्छता और पेयजल: जल जीवन मिशन और स्वच्छ भारत अभियान के तहत घर-घर जल और शौचालय की सुविधा सुनिश्चित करना।'ग्राम पंचायत विकास योजना' (GPDP) के माध्यम से स्थानीय संसाधनों का उपयोग कर रोजगार के अवसर पैदा किए जा रहे हैं। मनरेगा (MGNREGA) जैसी योजनाओं का क्रियान्वयन पंचायतों के माध्यम से होने से ग्रामीण पलायन में कमी आई है और स्थानीय स्तर पर परिसंपत्तियों का निर्माण हुआ है। प्राथमिक विद्यालयों की निगरानी, मध्याह्न भोजन (Mid-day Meal) की गुणवत्ता सुनिश्चित करना और स्थानीय स्वास्थ्य केंद्रों के माध्यम से टीकाकरण और मातृ-शिशु देखभाल को बढ़ावा देने में पंचायतों की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। पारदर्शिता लाने के लिए भारत सरकार ने ई-ग्रामस्वराज (e-GramSwaraj) पोर्टल और मोबाइल ऐप की शुरुआत की है।यह पंचायतों के लिए एक एकल डिजिटल प्लेटफॉर्म है जहाँ योजना बनाने से लेकर भुगतान तक की प्रक्रिया ऑनलाइन होती है। इससे भ्रष्टाचार पर लगाम लगी है और आम नागरिक यह देख सकते हैं कि उनके गाँव के विकास के लिए कितना पैसा आया और कहाँ खर्च हुआ। स्वामित्व योजना के माध्यम से ड्रोन तकनीक का उपयोग कर ग्रामीण संपत्तियों का सीमांकन किया जा रहा है, जिससे भूमि विवाद कम हो रहे हैं।इतनी उपलब्धियों के बावजूद, पंचायती राज व्यवस्था के पूर्ण सशक्तिकरण के मार्ग में कई बाधाएँ हैं: वित्तीय निर्भरता (3Fs की समस्या): पंचायतों को अक्सर फंड (Funds), फंक्शन (Functions) और फंक्शनरीज (Functionaries) की कमी का सामना करना पड़ता है। वे अपने स्वयं के राजस्व (जैसे कर या शुल्क) जुटाने में अक्षम हैं और राज्य/केंद्र के अनुदानों पर निर्भर हैं। राजनीतिक आरक्षण के बावजूद, कई क्षेत्रों में महिला प्रतिनिधियों के स्थान पर उनके पति या पुरुष रिश्तेदार कार्य करते हैं, जो वास्तविक महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य को बाधित करता है।
भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद: स्थानीय स्तर पर ठेके देने और योजनाओं के चयन में अक्सर रसूखदार लोगों या परिवारवाद का प्रभाव देखा जाता है। कई बार ग्राम सभा के सदस्यों को अपने संवैधानिक अधिकारों और तकनीकी प्रक्रियाओं की पूरी जानकारपंचायती राज को सही मायने में 'स्वराज' में बदलने के लिए निम्नलिखित सुधारात्मक कदमों की आवश्यकता है । पंचायतों को अपने वित्तीय संसाधन विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, जैसे कि स्थानीय हाट-बाजार, मछली पालन या पर्यटन पर शुल्क लगाना। नवनिर्वाचित प्रतिनिधियों के लिए नियमित कार्यशालाएं आयोजित की जानी चाहिए ताकि वे जटिल सरकारी नियमों और डिजिटल टूल्स को समझ सकें।
जवाबदेही सुनिश्चित करना: सोशल ऑडिट (सामाजिक अंकेक्षण) को अनिवार्य और प्रभावी बनाना चाहिए ताकि जनता स्वयं कार्यों का निरीक्षण कर सके।'स्मार्ट विलेज' की अवधारणा को बढ़ावा देते हुए गाँवों को हाई-स्पीड इंटरनेट से जोड़ना। पंचायती राज व्यवस्था भारतीय लोकतंत्र की धड़कन है। इसने न केवल विकास को शहरों से निकाल कर गाँवों तक पहुँचाया है, बल्कि एक आम ग्रामीण को भी यह अहसास कराया है कि वह अपने भाग्य का विधाता स्वयं है। हालांकि भ्रष्टाचार और वित्तीय स्वायत्तता जैसी चुनौतियाँ मौजूद हैं, लेकिन "सबकी योजना, सबका विकास" जैसे अभियानों ने एक नई उम्मीद जगाई है।जब हम 2047 तक 'विकसित भारत' के निर्माण का लक्ष्य रखते हैं, तो उसकी नींव इन्हीं पंचायतों के सशक्तिकरण पर टिकी होगी। यदि पंचायतें मजबूत होंगी, तो देश स्वतः ही प्रगति के पथ पर अग्रसर होगा। वास्तव में, पंचायती राज केवल शासन की एक प्रणाली नहीं है, बल्कि यह सामूहिक सहभागिता और सामाजिक न्याय का एक महायज्ञ है। डिजिटल इंडिया अभियान ने ग्रामीण शासन की कार्यप्रणाली को पूरी तरह बदल दिया है। ई-ग्रामस्वराज (e-GramSwaraj) पोर्टल केवल एक वेबसाइट नहीं, बल्कि पारदर्शिता और जवाबदेही का एक शक्तिशाली उपकरण है। एकीकृत योजना (Integrated Planning): पहले ग्राम पंचायत विकास योजना (GPDP) कागजों पर बनती थी। अब, हर पंचायत को अपनी वार्षिक योजना ई-ग्रामस्वराज पोर्टल पर अपलोड करनी होती है, जिससे शासन के उच्च स्तरों को पता रहता है कि जमीनी स्तर पर क्या प्राथमिकताएं तय की गई हैं इस पोर्टल के माध्यम से PFMS (Public Financial Management System) को जोड़ा गया है। इसका अर्थ है कि अब पंचायतों को मिलने वाला पैसा सीधे वेंडर या लाभार्थी के खाते में जाता है। इससे 'चेक' जारी करने या नकद लेनदेन में होने वाली हेराफेरी और कमीशनखोरी में भारी कमी आई है।रीयल-टाइम मॉनिटरिंग: कोई भी नागरिक अपने मोबाइल से देख सकता है कि उसके गाँव में सड़क निर्माण के लिए वर्तमान में काम की स्थिति क्या है। यह "डिजिटल ऑडिट" भ्रष्टाचार को रोकने का सबसे बड़ा हथियार है। जब तक कार्य की फोटो और प्रगति रिपोर्ट पोर्टल पर अपलोड नहीं होती, तब तक अगली किस्त जारी नहीं की जाती। इससे अधूरे पड़े प्रोजेक्ट्स की संख्या कम हुई है।
महिला सशक्तिकरण: 'पंचायत पति' से 'महिला नेतृत्व' तक का सफर - 73वें संविधान संशोधन ने महिलाओं के लिए 33% (कई राज्यों में 50%) आरक्षण सुनिश्चित किया, जिसने ग्रामीण भारत के शक्ति संतुलन को हिलाकर रख दिया।
प्रारंभिक वर्षों में यह देखा गया कि महिलाएँ चुनाव तो जीत जाती थीं, लेकिन वास्तविक सत्ता उनके पति या पुरुष संबंधी चलाते थे, जिन्हें अनौपचारिक रूप से 'पंचायत पति' कहा जाने लगा। इसके पीछे मुख्य कारण
सामाजिक रूढ़िवादिता और पितृसत्तात्मक सोच। महिलाओं में प्रशासनिक ज्ञान और साक्षरता की कमी। सार्वजनिक जीवन में महिलाओं के आने पर सामाजिक संकोच है। हालाँकि, पिछले दशक में तस्वीर तेजी से बदली है। अब महिला सरपंच और सदस्य केवल नाममात्र की प्रतिनिधि नहीं रह गई हैं: शोध के अनुसार जब महिलाएँ सत्ता में आती हैं, तो वे पेयजल, स्वच्छता, शिक्षा और पोषण जैसे विषयों पर अधिक ध्यान केंद्रित करती हैं, जो सीधे तौर पर परिवार और समाज के स्वास्थ्य से जुड़े होते हैं । पंचायत चलाने के अनुभव ने ग्रामीण महिलाओं को आत्मविश्वासी बनाया है। अब वे सरकारी अधिकारियों , जिला पदाधिकारी , अनुमंडल पदाधिकारी ,के सामने अपनी बात मजबूती से रखती हैं।
: एक महिला सरपंच को देखकर गाँव की अन्य लड़कियों को शिक्षा और नेतृत्व की प्रेरणा मिलती है। राजस्थान, बिहार और केरल जैसे राज्यों में ऐसी कई महिला सरपंच उभरी हैं जिन्होंने सौर ऊर्जा, डिजिटल साक्षरता और जल संरक्षण में विश्व स्तरीय मिसालें कायम की हैं।
पंचायती राज ने यह सुनिश्चित किया है कि समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े व्यक्ति (SC/ST और अल्पसंख्यक) की भी शासन में भागीदारी हो। नेतृत्व के पदों पर आरक्षण ने सदियों से चले आ रहे जातिगत भेदभाव को राजनीतिक रूप से चुनौती दी है। जब एक दलित या आदिवासी सरपंच तिरंगा फहराता है या ग्राम सभा की अध्यक्षता करता है, तो यह केवल एक राजनीतिक घटना नहीं, बल्कि एक गहरा सामाजिक संदेश होता है।
सबकी योजना सबकी विकास अभियान के तहत ग्राम सभा की बैठकों में महिलाओं, बुजुर्गों और वंचित वर्गों की उपस्थिति अनिवार्य की गई है, ताकि विकास योजनाएँ केवल 'ताकतवर' लोगों के मोहल्लों तक सीमित न रहें।
पंचायती राज अब केवल एक प्रशासनिक व्यवस्था नहीं, बल्कि एक सामाजिक आंदोलन बन चुका है। ई-ग्रामस्वराज जैसे तकनीकी हस्तक्षेपों ने जहाँ व्यवस्था को पारदर्शी बनाया है, वहीं महिलाओं के बढ़ते नेतृत्व ने इसे और अधिक संवेदनशील और मानवीय बनाया है। यदि हम पंचायतों को और अधिक वित्तीय स्वायत्तता दे सकें, तो भारत के गाँव आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था के वैश्विक मॉडल बन सकते हैं।
जब हम पंचायती राज की सफलता की बात करते हैं, तो कुछ गाँवों ने पूरे देश के लिए मिसाल पेश की है । हिवरे बाजार, महाराष्ट्र (पोपटराव पवार का नेतृत्व): कभी सूखे और गरीबी से जूझने वाला यह गाँव आज भारत के सबसे अमीर गाँवों में से एक है। यहाँ की पंचायत ने जल संरक्षण, वृक्षारोपण और नशेबंदी पर ध्यान दिया। आज इस गाँव में कई करोड़पति किसान हैं और यहाँ का विकास मॉडल पूरी दुनिया में पढ़ाया जाता है। पुंसारी, गुजरात: गाँव की पंचायत ने सरकारी फंड का इतना सटीक इस्तेमाल किया कि यहाँ शहरों जैसी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। पूरे गाँव में वाई-फाई, सीसीटीवी कैमरे, एयर-कंडीशन्ड स्कूल और बस सेवा मौजूद है। यह साबित करता है कि यदि पंचायत का इरादा मजबूत हो, तो गाँव को भी 'स्मार्ट' बनाया जा सकता है। पिप्लान्त्री, राजस्थान की पंचायत ने पर्यावरण और बेटी बचाओ अभियान को एक साथ जोड़ा। यहाँ बेटी के जन्म पर 111 पेड़ लगाए जाते हैं। आज यह गाँव एक घने जंगल में बदल चुका है और यहाँ की आर्थिक स्थिति भी बहुत सुधरी है। पंचायत ने फसल पैटर्न बदला और आज यह गाँव करोड़ों की आय वाला है, जब एक आदिवासी प्रधान अपनी संस्कृति और वनों की रक्षा के लिए योजना बनाता है, और जब एक युवा सचिव तकनीक के माध्यम से भ्रष्टाचार को रोकता है—तब सही अर्थों में भारत बदलता है। "सबकी योजना, सबका विकास" और "सबका विश्वास" के साथ, हमारी पंचायतें 21वीं सदी के भारत के निर्माण की सबसे मजबूत ईंटें साबित होंगी।
प्रमुख संदर्भ सूची संविधान (73वां संशोधन) अधिनियम, 1992। 15वें वित्त आयोग की रिपोर्ट (2021-2026)। पंचायती राज मंत्रालय (MoPR) की वार्षिक रिपोर्ट 2024-25। महात्मा गांधी का 'ग्राम स्वराज ।


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