नहीं जा पाए हम कुंभ मेला ,
चलो चलके संगम नहा लें ।जीवन भर जीवन के पचड़े ,
प्रेम सरस हम भी बहा लें ।।
देश विदेश आए कुंभ नहाने ,
कितने अभागे हम न जा पाए ।
हृदय के रोगी हुए पड़े हैं हम ,
काव्य रस भी नहीं गा पाए ।।
बनकर रहा अफसोस दिल में ,
चाहकर भी दर्शन नहीं पाए ।
मैं तो नहाने में रह गया भूखा ,
नहीं जाकर बहुत पछताए ।।
फिर पछताए होता ही क्या ,
जब चिड़िया चुग गई खेत ।
खेत हुआ खाली यह तो ऐसे ,
खेत में ही पड़ गया हो रेत ।।
जीवन मेरा रह गया अधूरा ,
अधूरी रह गई मेरी यह आस ।
जीवन मेरा बना पड़ा मायूस ,
कब तन हो जाए नि:श्वास ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag


0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com