मौन प्रेम का कोलाहल
कुमार महेन्द्रमृदुल मधुर अनुभूति बिंब,
पुनीत पावन हर भावना ।
एक रस चिंतन स्मृत पटल,
प्रिय दर्शन हित कामना ।
अनवरत अलौकिक स्पंदन,
हिय परम आनंद प्रवाह सहल ।
मौन प्रेम का कोलाहल ।।
द्वेष नैराश्य क्रोध विलोपन,
दूर भेदभाव रीति नीति ।
संज्ञा सर्वनाम प्रभाव सीमित,
विशेषण संग अनंत प्रीति ।
दुःख सुख अंतर सम भाव,
हिय निर्झर खुशियां चहल ।
मौन प्रेम का कोलाहल ।।
हृदय उपमा नेह सरोवर,
स्वयं प्रति आकर्षण श्रोत ।
अपनत्व धार संबंध क्षेत्र,
संबंध वेदी स्नेहिल ज्योत ।
परिपूर्ण प्रीत शून्य छोर,
प्रियतम छवि दर्शन नेहल ।
मौन प्रेम का कोलाहल ।।
प्रतिपल हर्ष उल्लास उमंग,
आत्मविश्वास परम बिंदु ।
सोच विचार सकारात्मक ,
रिक्ति पर्याय सिक्ति सिंधु ।
प्रीत अनुबंध जन्म जन्मांतर ,
स्वप्न लड़ियां आकार सकल ।
मौन प्रेम का कोलाहल ।।
कुमार महेन्द्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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