घूंघट
✍️ डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"
निगाहों में छुपा है एक पावन-सा घूंघट,
चाँदनी भी शरमा जाए उठे जब वो घूंघट।
हवा ने भी रोक ली अपनी सरगोशियाँ सारी,
बिखरने न दे दिल की कहानी को ये घूंघट।
मेरी चाहत के मौसम को मिला एक नया रंग,
उठा जब पलकों के कोरों से धीमे-सा घूंघट।
इबादत-सी लगती है वो पहली झलक उसकी,
उतरे जब रातों में चाँदनियों-सा घूंघट।
न जाने क्यों दिल की धड़कन तेज़ हो जाती,
महबूबा के हाथों में हिलता हुआ घूंघट।
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