शब्दवीणा के राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में नव वर्ष 2026 का हुआ काव्यमय अभिनंदन

- करें आज हम सब मिलकर, इस नये वर्ष का शुभ अभिनंदन।
- नये वर्ष की नव वेला में, नयी कल्पना जागे
- जब बुरा वक्त हो, तो प्रतीक्षा करो। मित्र है कौन, इसकी समीक्षा करो
- प्यारी दुनिया, प्यारे लोग, फिर क्यूं नहीं हमारे लोग
गया जी। राष्ट्रीय साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था 'शब्दवीणा' द्वारा नव वर्ष 2026 के स्वागत में "नये वर्ष का शुभ अभिनंदन" राष्ट्रीय कवि सम्मेलन आयोजित किया गया। देश के आठ प्रदेशोंं से जुड़े रचनाकारों ने नव वर्ष 2026 का काव्यमय अभिनंदन किया।कार्यक्रम का शुभारंभ वरिष्ठ कवि अरुण अपेक्षित द्वारा प्रस्तुत स्वरचित सरस्वती वंदना की सुमधुर प्रस्तुति से हुआ। शब्दवीणा की राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ रश्मि प्रियदर्शनी ने शब्दवीणा गीत प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन कर रहीं डॉ रश्मि तथा कीर्ति यादव ने सभी रचनाकारों का स्वागत किया। कवि सम्मेलन में मध्य प्रदेश से अरुण अपेक्षित एवं कर्नल गोपाल अश्क, नई दिल्ली से शिव कुमार सिंह, हरियाणा से सरोज कुमार, कीर्ति यादव एवं बृज माहिर, कर्नाटक से सुनीता सैनी गुड्डी, विजयेन्द्र सैनी एवं निगम राज़, महाराष्ट्र से डॉ कनक लता तिवारी, देवघर, झारखंड से बबन बदिया एवं डॉ परशुराम तिवारी, उत्तर प्रदेश से रामदेव शर्मा राही एवं रमेश चंद्र, उत्तराखंड से आशा साहनी एवं गया, बिहार से डॉ रश्मि प्रियदर्शनी, जैनेन्द्र कुमार मालवीय, डॉ रामसिंहासन सिंह एवं अरविंद कुमार शामिल हुए। श्री अपेक्षित की अध्यक्षता में रचनाकारों ने नये वर्ष के स्वागत में एक से बढ़कर एक गीत, गज़ल, मुक्तक, छंद तथा दोहे पढ़े।
डॉ रश्मि ने "करें आज हम सब मिलकर, इस नये वर्ष का शुभ अभिनंदन। नयी उमंगें, नयी तरंगें, नूतन अभिलाषा, नव जीवन" गीत की समधुर प्रस्तुति दी। जैनेन्द्र कुमार मालवीय ने "नये वर्ष की नव वेला में, नयी कल्पना जागे। भेद मिटा आपस का, मन में नयी चेतना जागे" रचना पढ़ी। वरिष्ठ कवि अरुण अपेक्षित के "लेकर आये नित नये उत्कर्ष, आपके जीवन में नूतन वर्ष" एवं "जब बुरा वक्त हो, तो प्रतीक्षा करो। मित्र है कौन, इसकी समीक्षा करो" जैसे प्रेरक गीतों पर खूब वाहवाहियाँ लगीं। डॉ कनक लता तिवारी ने नव वर्ष पर एक प्रेयसी द्वारा प्रिय के नाम लिखे संदेश को गीत के माध्यम से अभिव्यक्त करते हुए "नाम तुम्हारा जाने कितनी सदियों, सालों, मास लिखा है। फूलों की माला गूंथी, मैंने तो कुछ खास लिखा है" गीत गाया। बृज माहिर की ग़ज़ल "प्यारी दुनिया, प्यारे लोग, फिर क्यूं नहीं हमारे लोग। बाहर से मीठे लेकिन, भीतर से क्यूं खारे लोग" ने सबका हृदय जीत लिया। शिव कुमार सिंह ने हिंदू नव वर्ष को अपना असली नव वर्ष बताते हुए "जिस दिन धरती पूरा करती सूर्य देव का फेरा, वही नव वर्ष है मेरा" गीत सुनाया।
आशा साहनी की "स्वागत है, अभिनंदन है, नव वर्ष का। मुस्कुराओ, गुनगुनाओं भाव से, जिंदगी केवल विषय है हर्ष का", कीर्ति यादव की "जाते हुए दिसंबर, ठहर जरा सा कुछ पल" एवं कर्नल गोपाल अश्क की "धूल चढ़े साजों से, खिड़की से, दरवाजों से, हिलते पर्दों की आवाजों से, लगता है नया साल आया", रामदेव शर्मा राही की "उन्नति के पथ पे हमेशा हों सफल आप, ऐसी कामनाएँ मेरी स्वीकार कीजिए" को दर्शकों एवं श्रोताओं से खूब सराहना मिली। रमेश चंद्र की "मन मुदित है, धरा मुस्कुराने लगी", कवयित्री सरोज कुमार की "नव वर्ष, अपार हर्ष। कुछ नया कर जाने की कस्में" तथा निगम राज़ की "नया साल आया। खत्म होवें कष्ट। मिटें सारे भ्रष्ट। सभी मुस्कुरायें, सभी खिलखिलायें, ये संदेशा लाया" रचना पर खूब तालियाँ बजीं। विजयेन्द्र सैनी ने अपने मुक्तक "आप जहाँ भी रहो, बस मस्त रहो। कर्तव्य पालन में सदा व्यस्त रहो" द्वारा सभी को नये वर्ष की शुभकामनाएं दीं।
बबन बदिया की "कुछ पेज पलट गये बस, सब साथ भी वही है" एवं कीर्ति यादव की "जाते हुए दिसंबर, ठहर जरा सा कुछ पल" को भी सभी ने खूब पसंद किया। सुनीता सैनी की खर्राटे पर कौरवी बोली में लिखे गीत "अरी मैं तो सोऊं बरांडे के बीच पड़ी रहूं दोनों कानों को भींच" सुनकर सभी हँस पड़े। अरविंद कुमार के प्रयासों को भी सराहा गया। अध्यक्षीय संबोधन में श्री अपेक्षित ने कहा कि रचनाओं को लिखते समय "अभिधा, लक्षणा एवं व्यंजना" शब्द शक्तियों के सटीक प्रयोगों का ध्यान अनिवार्य रूप से रखना चाहिए। मंच पर वरिष्ठ कवि डॉ रामसिंहासन सिंह की गौरवमय उपस्थिति ने सभी का उत्साह बढ़ाया। कार्यक्रम का सीधा प्रसारण शब्दवीणा केन्द्रीय पेज से किया गया, जिससे जुड़कर प्रो. सुनील कुमार उपाध्याय, रामनाथ बेख़बर, पी. के. मोहन, हीरा लाल साव, डॉ रवि प्रकाश, टुन्नू दांगी, मधु वशिष्ठ, मोहन कुमार झा, ललित शंकर, अनुराग सैनी मुकुंद, डॉ विजय शंकर सहित अनेक काव्यप्रेमियों ने काव्य रस का आनंद उठाया।
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