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सत्ताखोरों के हाथों जनता गुलाम

सत्ताखोरों के हाथों जनता गुलाम

डा• मेधाव्रत शर्मा, डी.लिट.
(पूर्व यू.प्रोफेसर)
सत्ताखोरों के हाथों जनता गुलाम,कैसा मज़ाक है!
बौद्धिक जन चिन्ता में आठों याम, कैसा मज़ाक है!
दरवेशी बाने में हैं मक्कार फुसूँगर जालसाज,
अंधों में काना राजा सरनाम,कैसा मज़ाक है !
कर दी नशाखुरानी ऐसी पाजी नाजी ने है जम कर,
नाज उठाए नाच रहा खब्तीअवाम,कैसा मज़ाक है।
फासीवादी लोकतन्त्र को फाँसी देने पर आमादा,
बिके दलाल जिसको कहते हैं राम,कैसा मज़ाक है!
ठेकेदार धरम के खुदमुख़्तार जगद्गुरु अन्धे,
गले मिला करते हैं पाखंडी से,कैसा मज़ाक है।
इंतखाब में फतह किला करते हैं चोर पोच डाकू,
चाँदी धींगामुश्तों की रहती मुदाम,कैसा मज़ाक है!
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