माॅं का पहचान करो
तेरे अरमान सजाया जिसने ,सीने से तुझे लगाया जिसने ,
गले लगा सिखलाया जिसने ,
उस माॅं का तो सम्मान कर ।
भूखों रहकर तुम्हें खिलायी ,
गीले पे सो तुझे सूखे सुलाई ,
रूठने पे तुझे जो लोरी सुनाई ,
उस माॅं का तू न अपमान कर ।
जो भी तू माॅं से फरमान भरा ,
जिस माॅं ने पूरन अरमान करा ,
उस माॅं पर पगले तू सोच जरा ,
उस माॅं का आज अरमान भर ।
न पड़ तू दुनिया के चक्कर में ,
मत नाम लिखाओ फक्कड़ में ,
न भूलो तू अक्कड़ बक्कड़ में ,
जीवन में तू बेवफाई से डर ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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