नेता के नेवता
चले के बा बिहान वोट देवे ,आईल बाटे नेता के नेवता ।
पाॅंच साल सुखमय सुदृढ़ रहे ,
समझ के खोज लीं देवता ।।
खूब घूमल दैत्य देव टोली ,
सबके सिर पाग बन्हाईल बा ।
दैत्य पाग उटपटांग बॅंधाईल ,
सींग उनकर त तोपाईल बा ।।
जईसन नेत ओईसने नेता ,
जईसन नेता ओईसने नेवता ।
कवन हमनी के उबारी डूबाई ,
या मजधारे में छोड़ दी केवटा ।।
अपना धनुर्धारी के वोट दीहीं ,
अयोध्या के सिंहासन बईठाईं ।
बंशीधर खूब बंशी बजईहें ,
थिरक थिरक के जश्न मनाईं ।।
धनुर्धारी कभी तीर सम्हरिहें ,
बंशीधर के सुरीली रही तान ।
एही से भारत देवभूमि कहाला ,
देवते से मिले भारत के ज्ञान ।।
जाके पहिले रउआ वोट दीहीं ,
तब मुड़के ले लीं रउआ रास्ता ।
बिना रुकले रउआ घरे जाईं ,
पूड़ी मिठाई करीं खूब नाश्ता ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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