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मार्गशीर्ष मास: श्री कृष्ण का स्वरूप और दत्तात्रेय

मार्गशीर्ष मास: श्री कृष्ण का स्वरूप और दत्तात्रेय

सत्येन्द्र कुमार पाठक
सनातन धर्म के पंचांग में, प्रत्येक मास का अपना विशिष्ट धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है, किंतु मार्गशीर्ष मास (जिसे अगहन, अग्रहायण या मगसर भी कहते हैं) का स्थान सर्वोपरि है। हिन्दू कैलेंडर का यह नौवां महीना स्वयं भगवान श्री विष्णु और उनके पूर्णावतार श्री कृष्ण को समर्पित है।भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में इस मास की पवित्रता और श्रेष्ठता को सिद्ध करते हुए कहा है: "मासानां मार्गशीर्षोऽहम्" (अर्थात, महीनों में मैं मार्गशीर्ष हूँ।)। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सतयुग का आरंभ भी इसी मास की प्रथम तिथि से हुआ था, जो इसकी महत्ता को और बढ़ाता है।मार्गशीर्ष मास जप, तप, ध्यान, और दान-पुण्य के लिए अत्यंत शुभ और शीघ्र फलदायी माना गया है, जो आत्मिक शुद्धि, भक्ति और दान का मार्ग प्रशस्त करता है।
मार्गशीर्ष मास को साक्षात श्री कृष्ण का स्वरूप माना जाता है। इस पूरे माह श्रद्धा और भक्ति से किए गए पुण्य कर्मों के बल पर मनुष्य को जीवन में सुख-समृद्धि और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है। पूरे माह सूर्योदय से पूर्व गंगा, यमुना या अन्य पवित्र नदी में स्नान करने से पापों का नाश होता है और श्री कृष्ण की सहज कृपा प्राप्त होती है।
शंख पूजन शंख को भगवान विष्णु का प्रिय मानकर, उसे विधि-विधान से पूजा जाता है। शंख को श्री कृष्ण के पांचजन्य शंख के समान मानकर पूजा करने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और धन-ऐश्वर्य में वृद्धि होती है।
ग्रंथों का पाठ पूरे माह श्रीमद्भगवद्गीता, विष्णु सहस्रनाम, और गजेंद्र मोक्ष का पाठ करने से मानसिक शांति मिलती है और पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है।मंत्र जाप नित्य स्नान के बाद 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करना सुख-समृद्धि और भगवान विष्णु का आशीर्वाद दिलाता है। मार्गशीर्ष मास केवल भगवान विष्णु भक्ति का मास नहीं है, बल्कि यह अन्य प्रमुख अवतारों से भी जुड़ा है:गीता जयन्ती (मोक्षदा एकादशी): इसी मास की शुक्ल एकादशी को भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीता का ज्ञान दिया था।
काल भैरव जयन्ती: कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान शिव के रौद्र रूप, काल भैरव, का अवतरण हुआ था।विवाह पंचमी: शुक्ल पंचमी को अयोध्यापति श्री राम और माता सीता का विवाह संपन्न हुआ था।
मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि इस महीने का सबसे महत्वपूर्ण दिन होती है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार, इस पूर्णिमा पर चंद्रमा मृगशिरा नक्षत्र से युक्त होता है, इसीलिए इस मास का नाम 'मार्गशीर्ष' पड़ा। मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा के दिन, प्रदोष काल में, भगवान दत्तात्रेय का अवतरण हुआ था।त्रिमूर्ति का अंश: भगवान दत्तात्रेय को ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) तीनों त्रिदेवों का संयुक्त अंश अवतार माना जाता है।
भगवान दत्तात्रय का जन्म परम ज्ञानी महर्षि अत्रि और परम पतिव्रता माता अनुसूया के यहाँ हुआ था। माता अनुसूया के तप से प्रसन्न होकर त्रिदेवों ने उन्हें वरदान स्वरूप अपने अंश से पुत्र के रूप में जन्म लेने का वचन दिया था।
आदिगुरु: इन्हें 'महायोगीश्वर' और आदिगुरु माना जाता है, जिन्होंने प्रकृति के 24 तत्वों को अपना गुरु बनाया था भगवान दत्तात्रेय की पूजा करने से भक्तों को एक साथ त्रिदेवों का आशीर्वाद मिलता है, जिससे ज्ञान, समृद्धि और मोक्ष तीनों की प्राप्ति होती है। इस दिन पीले फूल, पीली वस्तुएँ अर्पित करने और धूप-दीप दिखाकर निम्नलिखित मंत्र का जाप करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएँ (संतान, सुख-शांति, वैभव) पूर्ण होती हैं: "ॐ वं दत्तात्रेय स्वाहा"
सत्यनारायण कथा: वैवाहिक जीवन में खुशहाली के लिए सत्यनारायण कथा का पाठ करना या सुनना चाहिए।
चंद्र देव को अर्घ्य: शाम को चंद्रोदय होने पर जल में सफेद फूल, दूध और अक्षत डालकर चंद्र देव को अर्घ्य देने से मानसिक शांति और चंद्रमा की स्थिति मजबूत होती है।पितृ तर्पण और दान: यह पूर्णिमा पितरों के तर्पण के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। इस दिन सफेद चीजों (दूध, चावल) और गर्म वस्त्रों का दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
मार्गशीर्ष मास से जुड़ी सतयुग के आरंभ की मान्यता हमें सनातन धर्म के चक्रीय कालचक्र की ओर ले जाती है, जहाँ युगों के अनुसार धर्म और मनुष्य के जीवन में क्रमिक पतन आता है।
सतयुग आंतरिक और पूर्ण ज्ञान। योग शक्ति और सिद्धियों पर आधारित जीवन। पूर्ण एकात्मता। मनुष्य स्वयं को प्रकृति का अभिन्न अंग मानता था।कलियुग भौतिकवादी और बाह्य विज्ञान। तकनीक और मशीनों पर पूर्ण निर्भरता। अतिक्रमण और शोषण। प्रकृति को केवल उपभोग की वस्तु मानना। जैसे-जैसे युगों का चक्र आगे बढ़ा, मनुष्य की जीवनशैली आंतरिक ज्ञान से बाह्य तकनीक की ओर उन्मुख हुई। सतयुग का ज्ञान जहाँ आत्मिक नियंत्रण पर केंद्रित था, वहीं कलियुग का विज्ञान बाह्य विश्व पर नियंत्रण के लिए संघर्ष करता है। प्राचीन काल से ही, भारतीयों ने सूर्य, तुलसी, पीपल और नदियों को देवता मानकर पूजा है, जो प्रकृति से गहरे आध्यात्मिक लगाव का ऐतिहासिक प्रमाण है।
मार्गशीर्ष मास सनातन धर्म का एक ऐसा पवित्र काल है, जिसे स्वयं श्री कृष्ण ने अपना स्वरूप बताया है। यह मास हमें आत्मिक शुद्धि, भक्ति और दान का मार्ग दिखाता है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा का दिन, जो भगवान दत्तात्रेय के अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है, इस पवित्र मास की शोभा को और बढ़ा देता है। यह तिथि हमें यह संदेश देती है कि परम ब्रह्म (त्रिदेव) एक ही हैं, जो भक्तों के कल्याण के लिए सहजता से अवतरित होते हैं। इस माह में की गई साधना व्यक्ति को न केवल सांसारिक सुखों की प्राप्ति कराती है, बल्कि जीवन में ज्ञान और मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त करती है।मार्गशीर्ष वैदिक केवम ज्योतिष पंचाग के अनुसार मार्गशीर्ष का कृष्ण प्रतिपदा नववर्ष होता है ।

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