वय की स्मृतियाँ आ कर
डा रामकृष्ण मिश्र
वय की स्मृतियाँ आ करनूतन आशाएँ दे जातीं
बस ,चुफचाप मधुर अनुभव
अपनापन परचम लहरातीं।।
कैसे अथ से शून्य शिखर तक
राह टटोली गई अपरिचित
शूल -फूल के संघर्षों ने
साहस रचे विशेष अपरिमित।
श्रमसीकर की साँसें अपनी
श्वेत पताकाएँ लहराती।।
किसने कहा बर्फ में केवल
शीतलता का दंभ पिघलता
अनवधानता में पैरों का साहस
अपने आप फिसलता।
दृढता भी विपरीत हवा में ं
स्वयं पताकाहै फहराती।।
बहुत दूर जानेवालों से
अभी लक्ष्य क्यों पूछा जाए
चाहे षटरस भोज्य मिले या
जीवन हित कुछ छूछा खाए।
सत्य कल्पना के अंतर में
नवल प्रेरणा है कुंभलाती।। ११४
लेखक डा रामकृष्ण मिश्र , गया जी
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag


0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com