मैं उसके किरदार का साझेदार हूं।
कहूंगा तो नहीं! वाकई समझदार हूं।दुनिया समझती है अपने हिस्से पर मालिकाना हक़
मैं समझता हूं बस किरायेदार हूं।
लोग नाहक लड़ते हैं खुद से खुद के लिए,
वो भी मिट्टी होंगे एक दिन, मैं तो अभी से तैयार हूं।
शोर शराबे, खून खराबे, चालें, जुगाड़ तरह तरह से
ले जाती भी है किसी को उसके मुकाम पे?
आंधी थोड़े न देखती है किसी मासूम की बेबसी
किसी का ज़मीर छूटा, किसी पे किसी का यक़ीन
बड़े बड़े हुए देखो , बड़ बड़ा रहा वो जिसका सब लुटा
मुंह चिढ़ाता, कोई जा रहा कहते ये कि मैं शहरयार हूं।
अंकेश
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