"शब्द-साधना का अनुभव"
पंकज शर्मामन की अदृश्य पुकार सुनता हूँ,
जो कहती है, 'तेरा पृष्ठ अब भी कोरा'।
यह आंतरिक सत्य है,
जिसे सुनने का गहन अनुभव है।
क्योंकि लिखना... वह केवल शब्द नहीं।
मैं जीवन के कण चुनता रहा,
छोटे-छोटे अनुभव, विस्मृत पल—
उसे उपलब्धि मानकर सहेजता।
और यदि इस क्रम में,
वह चेतना इमारत बनी, तो यह दैवयोग।
जब भी मैंने शब्दों को पिरोया,
उन्हें अनुभव की डोर दी,
लोगों ने तुरंत उसे सही इबारत कहा।
पर सच्ची रचना... वह केवल कहना नहीं,
वह भीतर का सत्य उंडेलना है।
जानता हूँ, ये कण कभी-कभी
विस्फोटक शक्ति धारण कर लेते हैं।
मैं कणाद नहीं, पर द्रष्टा हूँ
उन सूक्ष्म तत्त्वों का,
जिन्हें चुनकर भाव को आकार देता हूँ।
मैंने अपनी अंदर की भट्टी
सदैव प्रज्वलित रखी है— शब्दों की अग्नि।
क्योंकि ऊर्जा उधार नहीं ली जाती।
जब सृजन का सूर्य तपता है,
उसे अपनी ही ऊष्मा चाहिए।
यह काव्य यदि जन्म ले,
तो यह किसी लघु कथा का नहीं,
यह भीतर के महाभारत का
विराट आख्यान होगा।
हर पंक्ति एक धर्मयुद्ध है।
पर सृष्टि-कर्म सरल नहीं होता,
यह साधना है, तपस्या है।
मुझको श्रम करना पड़ता है,
इस कविता को मर-मर कर जीवन देने में।
सत्य को छंद देना आसान नहीं।
यह मेरी नियति है, मेरा कर्म।
मौन में ही शब्दों का गर्जन छिपा है।
और यह संघर्ष ही मेरा अधिकार है—
अनुभूति से उपजे
अर्थ को संसार तक पहुँचाने का।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
✍️ "कमल की कलम से"✍️ (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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