"सृजन का आह्वान"
पंकज शर्मा
मित्रों मनुष्य का सहज स्वभाव है त्रुटियों का अन्वेषण करना, परंतु यह आलोचनात्मक विमर्श ही यदि हमारी समूची ऊर्जा का अपहरण कर ले, तो सृजन का अवकाश कहाँ रहेगा? संसार को अंधकार से आलोक की ओर अग्रसर करने हेतु हमें मात्र दोषों के लेखा-परीक्षण से विमुख होना होगा। यह युग निष्क्रिय निरीक्षण का नहीं, अपितु सार्थक सक्रियता का है। हमें अपनी मेधा और कर्मठता को केवल विसंगतियों पर इंगित करने के बजाय, नव निर्माण की आधारशिला रखने में विनियोजित करना चाहिए।
वास्तविक प्रगति का सोपान आलोचना के वाग्जाल से नहीं, बल्कि ठोस योगदान की दृढ़ता से निर्मित होता है। निर्माता वह है जो टूटी हुई व्यवस्था में भी संभावना का बीजारोपण करता है; वह निष्क्रिय दर्शक नहीं, अपितु परिवर्तन का उत्प्रेरक होता है। अतः, आवश्यक है कि हम निर्माता की भूमिका का वहन करें, क्योंकि विश्व-कल्याण का पथ केवल सृजन के पुलों से प्रशस्त होता है, न कि आलोचना के खाइयों से।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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