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विकास, आस्था और महिला सशक्तिकरण की त्रिवेणी पर एनडीए की ऐतिहासिक विजय

विकास, आस्था और महिला सशक्तिकरण की त्रिवेणी पर एनडीए की ऐतिहासिक विजय

सत्येन्द्र कुमार पाठक
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का परिणाम भारतीय राजनीति और सामाजिक ताने-बाने पर दूरगामी प्रभाव डालने वाला एक निर्णायक क्षण है। 6 नवंबर और 11 नवंबर को हुए मतदान के बाद 14 नवंबर 2025 को हुई मतगणना ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को 202 सीटों का प्रचंड बहुमत दिया, जबकि इंडिया महागठबंधन केवल 35 सीटों पर सिमट गया। चुनावी परिणाम, महिलाओं की भागीदारी और दोनों गठबंधनों के उद्देश्यों के आधार पर जनादेश का है। विधानसभा चुनाव 2025 में 29 महिला विधायक सदन में 26 एनडीए 3 महागठबंधन से है।40 से कम उम्र के विधायक 18 है।एनडीए की 202 सीटों की जीत ( भाजपा 89, जदयू 85, लोजपा 19, RLM आरएलएम 4, हम 5) बिहार के चुनावी इतिहास में एक मील का पत्थर है। यह 2020 के परिणाम को दोहराने से भी अधिक, जनता के विश्वास की निरंतरता को दर्शाता है। एनडीए की जीत केवल पारंपरिक जातिगत समीकरणों का परिणाम नहीं है, बल्कि लाभार्थी वर्ग के निर्माण की सफलता है। ₹10,000 की गारंटी योजना, जीविका, साइकिल योजना, और केंद्र की आवास व मुफ्त राशन योजनाओं ने एक बड़ा, गैर-जातिगत महिला वोट बैंक तैयार किया। यह मतदाताओं को दीर्घकालिक आर्थिक सुधारों के बजाय सरकारी खैरात पर निर्भर बनाता है। हालांकि, बिहार जैसे राज्य में, जहां सामाजिक-आर्थिक विषमता अधिक है, ये योजनाएँ महिलाओं के लिए न्यूनतम सुरक्षा कवच प्रदान करती हैं, जिसने उनके मतदान के व्यवहार को सीधे प्रभावित किया। जीत डबल इंजन की कहानी पर आधारित थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय विश्वसनीयता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की स्थानीय सुशासन की छवि एक साथ काम कर गई। नीतीश कुमार की उम्र और जदयू का बीजेपी से कम सीटें लाना (85 बनाम 89) भविष्य में गठबंधन के भीतर शक्ति संतुलन पर प्रश्नचिह्न लगाता है। बीजेपी अब राज्य में सबसे बड़ी पार्टी है, जो गठबंधन की गतिशीलता को प्रभावित करेगी।
इंडिया महागठबंधन के नेताओं द्वारा सनातन विरोधी और छठ मैया विरोधी टिप्पणियों को एनडीएने पूरी ताकत से मुद्दा बनाया। यह 'सनातन विरोधी बनाम सनातन समर्थक' की लड़ाई बन गई है। यह एक सांस्कृतिक ध्रुवीकरण था, जिसने विकास के बुनियादी सवालों को गौण कर दिया। एनडीए की चुनावी मशीनरी ने इस भावनात्मक मुद्दे का लाभ उठाकर गैर-यादव ओबीसी और सवर्ण वोटों का भारी ध्रुवीकरण सुनिश्चित किया। महागठबंधन ने एक तरफ बेरोजगारी जैसे आर्थिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश की, वहीं दूसरी तरफ उसके नेताओं ने जातिवाद, परिवारवाद, और आस्था विरोधी टिप्पणियों से जनता को दूर कर दिया। राजद नेता : तेजस्वी यादव का 10 लाख नौकरियों का वादा युवाओं को आकर्षित कर सकता था, लेकिन उनके गठबंधन पर लगे 'जंगलराज' और 'लाठीवाद' के आरोपों ने मतदाताओं को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या वे अराजकता की कीमत पर नौकरी चाहते हैं।
राजद की पारंपरिक मुस्लिम-यादव (M-Y) राजनीति, जो 2020 में भी पूरी तरह सफल नहीं थी, 2025 में और कमजोर हो गई। राजद का 25 सीटों पर सिमटना यह दर्शाता है कि मुस्लिम और यादव समुदायों का एक हिस्सा भी स्थिरता और विकास के लिए एनडीए की ओर आकर्षित हुआ। महागठबंधन अपने जातिगत जनगणना के मुद्दे को भुनाने में इसलिए असफल रहा, क्योंकि उसने आर्थिक न्याय के बजाय इसे केवल राजनीतिक सत्ता के साधन के रूप में प्रस्तुत किया। कांग्रेस और वाम दलों की कमजोर उपस्थिति और राहुल गांधी का सनातन पर विवादास्पद रुख महागठबंधन को कोई राष्ट्रीय विश्वसनीयता नहीं दे पाया। वोट चोरी और चुनाव आयोग पर लगाए गए निराधार आरोपों ने विपक्षी नेताओं की लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति अनास्था को दर्शाया, जिससे पढ़े-लिखे और जागरूक मतदाताओं ने दूरी बना ली। महागठबंधन की 35 निर्वाचित विधायकों में राजद 25 , कांग्रेस 6 , बाम दल 3 आई आई पी 1 विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुए ।
: लोकतंत्र की 'साइलेंट फोर्स' का प्रभाव (71% मतदान)2025 के चुनाव में महिला मतदाताओं की भागीदारी 71.6% रही, जो पुरुष मतदाताओं (62.8%) से लगभग 9% अधिक है। यह चुनाव का सबसे महत्वपूर्ण और निर्णायक कारक रहा।: यह मतदान प्रतिशत दर्शाता है कि महिलाएँ अब पारंपरिक पारिवारिक/जातिगत दबावों से मुक्त होकर मतदान कर रही हैं। वे एक स्वतंत्र राजनीतिक वर्ग के रूप में उभरी हैं, जिसका मत लाभ, सुरक्षा और सुशासन जैसे ठोस मुद्दों पर आधारित होता है। महिला मतदाताओं ने शराबबंदी और बेहतर कानून व्यवस्था को प्राथमिकता दी। महागठबंधन पर लगे 'जंगलराज' के आरोपों को महिलाओं ने अस्वीकार किया, और उन्होंनेएनडीए के 'सुशासन' पर भरोसा जताया। महिला वोट बैंक के इस ध्रुवीकरण को केवल योजनाओं तक सीमित नहीं किया जा सकता। यह उनकी बढ़ती आकांक्षाओं का प्रतीक है। एनडीए को अब ₹10,000 की गारंटी से आगे बढ़कर उनके लिए उच्च शिक्षा, स्वास्थ्य और संगठित क्षेत्र में रोजगार के अवसर प्रदान करने होंगे, अन्यथा यह समर्थन अस्थिर हो सकता है।
एनडीए सरकार ने महिला कल्याण के लिए ₹2 लाख तक की व्यावसायिक सहायता और जीविका का विस्तार करने का वादा किया है। ये योजनाएँ सराहनीय हैं, लेकिन इनकी सफलता पारदर्शिता और प्रभावी क्रियान्वयन पर निर्भर करेगी। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि ये सहायता राशि केवल कागजों पर न रह जाए, बल्कि छोटे उद्यमों की स्थापना में वास्तविक मदद करे। सुरक्षा और कानून व्यवस्था में किसी भी तरह की गिरावट सीधे महिला मतदाताओं के विश्वास को प्रभावित करेगी। इसलिए,एनडीए सरकार को शराबबंदी को सख्ती से लागू रखने और महिला सुरक्षा के लिए विशेष फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने पर ध्यान केंद्रित करना होगा। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का परिणाम केवल एक चुनावी जीत नहीं है, बल्कि बिहार की राजनीति के एक नए अध्याय का आरंभ है।यह चुनाव यह स्थापित करता है कि केवल जातिवाद और परिवारवाद की राजनीति अब बिहार में काम नहीं करेगी। मतदाताओं ने आकांक्षाओं को पहचान पर प्राथमिकता दी है। सकारात्मक, विकास-उन्मुख और सांस्कृतिक पहचान से जुड़ा हुआ एजेंडा, जिसे प्रभावी ढंग से क्रियान्वित किया गया हो, नकारात्मक और विभाजनकारी राजनीति पर भारी पड़ता है।
: 202 सीटों के साथ एनडीए के पास अगले पाँच वर्षों में बिहार के सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य को बदलने का एक अभूतपूर्व जनादेश है। युवा बेरोजगारी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मूलभूत समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करना और केवल धार्मिक या कल्याणकारी योजनाओं तक सीमित न रहना उनकी सबसे बड़ी चुनौती होगी। बिहार की जनता ने अराजकता को स्थिरता, नकारात्मकता को आस्था, और विभाजनकारी राजनीति को विकास के आश्वासन पर तरजीह दी है। 2025 का यह जनादेश, एक सशक्त, जागरूक और महत्वाकांक्षी 'नया बिहार' की दिशा का संकेत है, जिसका नेतृत्व मुख्य रूप से उसकी जागरूक महिला मतदाताओं ने किया है।
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