शब्दवीणा की साहित्यिक परिचर्चा "एक शाम, साहित्य के नाम" में ग़ज़ल की बारीकियों पर हुई बातचीत

- वरिष्ठ साहित्यकार अजय 'अज्ञात' से वार्ताकार जीतेंद्र सिंघल ने पूछे अनेक साहित्यिक प्रश्न
- "-कल्पना ज़रूरी है, भावना ज़रूरी है। शायरी में शायर की आत्मा ज़रूरी है।"
- "-सीखना अगर चाहो जीने का सलीका तुम। पास में बुजुर्गों के बैठना ज़रूरी है।"
गया जी। राष्ट्रीय साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था 'शब्दवीणा' की हरियाणा प्रदेश समिति एवं फरीदाबाद जिला समिति के तत्वावधान में प्रत्येक माह तीसरे बुधवार को "एक शाम, साहित्य के नाम" साहित्यिक परिचर्चा नियमित रूप से आयोजित की जा रही है। शब्दवीणा की संस्थापिका एवं राष्ट्रीय अध्यक्षा प्रो. डॉ. रश्मि प्रियदर्शनी ने बताया कि कार्यक्रम में आचार्य धर्मेश 'अविचल', प्रो. डॉ दुर्गा सिन्हा उदार, प्रो डॉ प्रीता पँवार, परिणीता सिन्हा 'स्वयंसिद्धा', मधु वशिष्ठ, संतोष अग्रवाल, अजय कुमार शर्मा 'अज्ञात' बतौर आमंत्रित रचनाकार, तथा बतौर संचालनकर्ता कवयित्री सरोज कुमार, कीर्ति यादव, रिया अग्रवाल, जीतेन्द्र सिंघल, मधु वशिष्ठ जैसे जाने-माने रचनाकार शामिल हो चुके हैं। कार्यक्रम को सभी दर्शकों एवं श्रोताओं से खूब सराहना मिल रही है।
डॉ रश्मि ने बताया कि "एक शाम, साहित्य के नाम" के नवंबर माह के अंक में गत बुधवार आमंत्रित रचनाकार के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार अजय कुमार शर्मा 'अज्ञात' रहे। कार्यक्रम का संचालन शब्दवीणा फरीदाबाद जिला साहित्य मंत्री जीतेंद्र सिंघल ने, तथा संयोजन हमेशा की तरह शब्दवीणा हरियाणा प्रदेश सचिव व 'एक शाम साहित्य के नाम" की प्रभारी कवयित्री सरोज कुमार ने किया। अजय 'अज्ञात' ने कार्यक्रम में अपने साहित्यिक अनुभवों को साझा करते हुए ग़ज़ल की बारीकियों पर सविस्तार प्रकाश डाला। बहर (छंद), मिसरा, शेर (दोहा), मतला, रदीफ, काफ़िया, मक्ता, तख़ल्लुस एवं रब्त का उदाहरण सहित मतलब समझाया। विभिन्न संस्थानों द्वारा साहित्यकारों को गरिमाविहीन तरीके से पुरस्कार बांटते रहने देने की दूषित प्रक्रिया पर प्रश्नचिन्ह भी लगाये।
शब्दवीणा द्वारा आयोजित सभी कार्यक्रमों की उत्कृष्टता एवं स्तरीयता की उत्साहवर्द्धक प्रशंसा करते हुए श्री अज्ञात ने कहा कि संस्था से अनेक विद्वान एवं साहित्यकार जुड़े हैं, संस्था को कुशल नेतृत्व दे रहे हैं, और कुशलतापूर्वक साहित्य सृजन भी कर रहे हैं। उन्होंने शब्दवीणा परिवार के लिए अपनी ओर से हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए संस्था के उज्ज्वल भविष्य की कामना की। सुमधुर स्वर में अपनी ग़ज़ल की प्रस्तुति दी। कहा कि "कल्पना ज़रूरी है, भावना ज़रूरी है। शायरी में शायर की आत्मा ज़रूरी है। सीखना अगर चाहो जीने का सलीका तुम। पास में बुजुर्गों के बैठना ज़रूरी है।" कार्यक्रम का सीधा प्रसारण शब्दवीणा केन्द्रीय पेज से किया गया, जिससे जुड़कर महेश चंद्र शर्मा राज, पी. के. मोहन, डॉ रश्मि प्रियदर्शनी, डॉ रवि प्रकाश, गुड़िया अग्रवाल, सुनील सिन्हा खेतान, फतेहपाल सिंह सारंग, जैनेन्द्र कुमार मालवीय, संतोष गोयल, सरोज कुमार, रूद्रा सिंघल, सरिता कुमार, हनी गर्ग आदि अनेक साहित्यानुरागियों ने साहित्यिक परिचर्चा एवं काव्य पाठ को सुना, देखा व सराहा।
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