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"संगठन से उत्कर्ष"

"संगठन से उत्कर्ष"

पंकज शर्मा
प्रिय मित्रों प्रस्तुत सूक्ति मानव संबंध और स्थायी सफलता का मर्म समझाती है। जो व्यक्ति अपने संघर्ष के सहयात्रियों को मात्र सहयोगी न मानकर, उन्हें सफलता का वास्तविक साझेदार बनाता है, वह यथार्थ में प्रगतिशील होता है। यह दृष्टिकोण केवल संसाधनों का बँटवारा नहीं, अपितु विश्वास, सम्मान और सामूहिक विकास की नींव रखता है। ऐसे नेतृत्व में, प्रत्येक सदस्य स्वयं को महत्वपूर्ण मानता है और अपनी पूर्ण क्षमता से योगदान करता है। यह साझा स्वामित्व ही उस शक्ति का सृजन करता है जो व्यक्ति विशेष की सीमाओं को लाँघकर एक अटूट और दीर्घकालिक विजय पथ का निर्माण करता है।


​इस प्रकार अर्जित की गई सफलता, किसी क्षणिक चमक की भाँति क्षीण नहीं होती, अपितु समय के साथ और भी दीप्तिमान होती जाती है। जब कीर्ति किसी एक व्यक्ति की न होकर, एक कृतज्ञ और सशक्त समूह की सामूहिक उपलब्धि होती है, तब उसे हिला पाना सहज नहीं होता। यह निष्कलंक यश और अक्षुण्ण सम्मान उस गहरे मानवीय निवेश का परिणाम है, जहाँ परस्पर सहयोग को प्रतिस्पर्धा से ऊपर रखा गया है। यह शाश्वत प्रगति का मंत्र है, जो सिखाता है कि शिखर पर अकेले पहुँचना क्षणिक हो सकता है, परंतु साथ मिलकर बढ़ना ही अमरता का द्वार है।


. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
 पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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