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काव्यरथी सदा चलता अपूर्व पथ पर

काव्यरथी सदा चलता अपूर्व पथ पर

कुमार महेंद्र
रोम रोम जन संवेदनाएं,
सत्य रक्षित सतत प्रयास।
शब्द भाव चेतना ओतप्रोत,
अर्थ अंतर उमंग उल्लास ।
कलम स्तुति साधना शीर्ष,
मानवता दीप्ति शपथ पर ।
काव्यरथी सदा चलता अपूर्व पथ पर ।।


दुःख पीड़ा संकट साथी,
सुख समृद्धि वैभव सेतु ।
सर्व धर्म समभाव दृष्टि,
स्नेह प्रेम भाईचारा हेतु ।
नारी शक्ति प्रेरणा स्फुरण,
राष्ट्र धरा जयकार कथ पर ।
काव्यरथी सदा चलता अपूर्व पथ पर ।।


स्नेहिल दृष्टि दैनिक जीवन,
हर आयु लिंग सजग सम्मान ।
आरेख लोक अठखेलियां,
निज संस्कृति प्रतिष्ठा आह्वान ।
प्रकृति प्रति दायित्व बोध,
स्वच्छ परिवेश प्रतिज्ञा रथ पर ।
काव्यरथी सदा चलता अपूर्व पथ पर ।।


जन स्वर मुखर अभिव्यक्ति,
भेद विभेद विरोध पुरजोर ।
शासन तंत्र पारदर्शी ज्योत,
अधिकार पूर्व कर्तव्य भोर ।
सशक्त अभिजागर नैतिकता,
आनंद वृष्टि चिंतन मथ पर ।
काव्यरथी सदा चलता अपूर्व पथ पर ।।


कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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