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तुलसी शालिग्राम विवाह

तुलसी शालिग्राम विवाह

✍️ डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"
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शालिग्राम वर, कन्या तुलसी
आज सजी सुहानी।
हरि के संग बँधे प्रीत पवित्र,
मंगल घट बानी॥
शंख ध्वनि गूँजे आँगन में,
सुगंधित बरसे पानी॥
भक्त झूमे, जय-जय बोले,
पूर्ण हुई मन वानी॥
तुलसी-शालिग्राम विवाह, शुभ की है निशानी,
जय-जय विष्णु प्रिया,जय तुलसी महारानी॥


गंगाजल से चरण पखारे,
तुलसी के श्रीसाजन,
फूल बरसे देवलोक से,
बाजे मधुर वादन॥
हरि हर्षे, नारद गावे,
बजते शंख-मृदंग,
आनंद-मग्न हुए सब,
देवी - देवता संग॥
तुलसी-शालिग्राम विवाह,शुभ की है निशानी,
जय-जय विष्णु प्रिया, जय तुलसी महारानी॥


गन्ने से सुंदर मंडप सजे,
सहस्र दीपक जले,
भक्त जन गाएँ प्रेम भरे,
गीतिका मंडप तले॥
हरि स्वयं वर बने,
जग का पावन उत्सव यह,
भव-सागर पार लगावे,
हरि-तुलसी नाम मह॥
तुलसी-शालिग्राम विवाह, शुभ की है निशानी,
जय-जय विष्णु प्रिया, जय तुलसी महारानी॥


कन्यादान स्वयं ब्रह्मा ने किया,
साक्षी विष्णुधाम,
लक्ष्मी बोलीं— “मंगल हो,
अमर रहे यह नाम।”
धरती-गगन झूम उठे तब,
बरसे पुष्प अनूप,
हरि-भक्ति की गंगा बही,
खिला धर्म का धूप।।
तुलसी-शालिग्राम विवाह,शुभ की है निशानी,
जय-जय विष्णु प्रिया, जय तुलसी महारानी॥


जो भी श्रवण करे यह कथा,
हृदय में हरि बस जाए,
सद्गति पावे, प्रेम बढ़े,
भवबंधन छूट जाए॥
भक्त कहें “जय मां तुलसी”,
मन में ले अरदास,
सदा सुहागन तुलसी माता,
पूजित हरि के पास,
तुलसी-शालिग्राम विवाह, शुभ की है निशानी,
जय-जय विष्णु प्रिया, जय तुलसी महारानी॥
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