गरीबी में सामूहिक जीवन जिया करता था
अमीरी ने मुझे तन्हा बना दिया।सिमट गया हूँ अपने ही आवरण में,
दौलत ने अपनों से जुदा करा दिया।
बढ़ गई हैं दूरियाँ सिमटने के कगार तक,
निन्यानवें के फेर ने कैसा उलझा दिया?
माँ- बाप, बच्चों से भी रिश्ते बदल गए,
बस दौलत का उनसे मेरा रिश्ता बना दिया।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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