दो दिन की जिंदगी है
दो दिन की जिंदगी है दो दिन का मेला है।इक दिन उड़ जाएगा प्यारे हंसा अकेला है।
बंद मुट्ठी आया जग में हाथ पसारे जायेगा।
धन दौलत माल खजाना धरा यही रह जाएगा।
तेरा मेरा कुछ नहीं प्यारे दुनिया एक सराय है।
मत दुखाना दिल किसी का खा जाती हाय है।
रह जाती है इस दुनिया में चर्चा तेरे कर्मों की।
दो वाणी के बोल मीठे मानवता के धर्मों की।
चार दिनों का खेल जग में फिर आगे भी जाना है।
सांसों की राग सुन ले किसका कहां ठिकाना है।
धड़कने कब रुक जाए क्या गुरु क्या चेला है।
दो दिन की जिंदगानी प्यारे दो दिन का मेला है।
माटी की काया एक दिन माटी में मिल जाना है।
टूटी सरगम सांसों की डोरी पंछी को उड़ जाना है।
शतरंज के सब है मोहरे बाजीगर कोई और है।
कठपुतली है सारी दुनिया हाथों में उसके डोर है।
जीव जग में आना-जाना जन्म मरण का खेल है।
उसकी मर्जी चलती खाली राजपाट सब फेल है।
काम न आवे अंत घड़ी क्या रुपया क्या धेला है।
दो दिन की जिंदगानी प्यारे दो दिन का मेला है।
रमाकांत सोनी सुदर्शन नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान
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