वंदे मातरम – देश की धड़कन
✍️ डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"वंदे मातरम कोई गीत नहीं,
एक पुकार है,
हर दिल की धड़कन में बसी,
आत्मिक प्यार है।
नदियों की लहरों में इसकी,
लय सुनाई देती है,
हर खेत की मिट्टी में इसकी,
महक समाई रहती है।
जब गूँजता है “वंदे मातरम”,
सिर झुक जाते हैं,
शहीदों के सपने आँखों में,
उतर आते हैं।
ये केवल शब्द नहीं आत्मा की
सुरीली तान है,
हर भारतवासी के हृदय की,
अमित पहचान है।
माँ की ममता सितारों जैसी,
रिमझिम झलकती है,
हर फूँक में शक्ति इसकी,
अंगारों जैसी दहकती है।
न कोई ध्वज, न कोई निशान,
आजादी की पहचान है,
ये है मातृभूमि का पावन स्वर,
सभी दिलों की अरमान।
सैनिक सीमा पर सीना तान,
जब डटा रहता है,
उसके होंठों पर वंदे मातरम,
का स्वर सटा रहता है।
जब कोई किसान हल चलाता,
है अपने खेत में,
“वंदे मातरम” गूंजता है उसके,
मिट्टी की रेत में।
ये राष्ट्रगान हीं नहीं वरन ये
राष्ट्र की सांस है,
भारत की जनता का सबसे,
प्रिय और खास है।
हर युग में, हर दिल में,
अमर रहेगा ये नाम,
"वंदे मातरम" यह गीत अमर है,
अखण्ड राष्ट्र को प्रणाम।
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