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फूल सुनाती अपनी गाथा

फूल सुनाती अपनी गाथा

व्यथित हृदय की है वेदना ,
फूल सुनाती अपनी गाथा ।
कुचल रहे मुझे आज हिजड़े ,
सुनाती पीटकर निज माथा ।।
मेरी भी है यही अभिलाषा ,
बिछ जाऊॅं मैं वैसे पथ पर ।
जिस पथ जाते वीर सैनिक ,
पैदल या बैठकर रथ पर ।।
या शहीद हुए हैं जो सैनिक ,
उनकी अर्थी में सज जाऊॅं ।
चढ़ता तो हूॅं देवों के शीश पे ,
होत शहीद पद रज खाऊॅं ।।
चाह नहीं अधमों के कर से ,
यूॅं ही मैं भी मसला जाऊॅॅं ।
मानसिंह जयचंद के छूने से ,
लाजवंती सा कुंभला जाऊॅं ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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