फूल सुनाती अपनी गाथा
व्यथित हृदय की है वेदना ,फूल सुनाती अपनी गाथा ।
कुचल रहे मुझे आज हिजड़े ,
सुनाती पीटकर निज माथा ।।
मेरी भी है यही अभिलाषा ,
बिछ जाऊॅं मैं वैसे पथ पर ।
जिस पथ जाते वीर सैनिक ,
पैदल या बैठकर रथ पर ।।
या शहीद हुए हैं जो सैनिक ,
उनकी अर्थी में सज जाऊॅं ।
चढ़ता तो हूॅं देवों के शीश पे ,
होत शहीद पद रज खाऊॅं ।।
चाह नहीं अधमों के कर से ,
यूॅं ही मैं भी मसला जाऊॅॅं ।
मानसिंह जयचंद के छूने से ,
लाजवंती सा कुंभला जाऊॅं ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag


0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com